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मित्र के लिए त्याग
रघुनाथ के मुँह से शब्द न निकल सके, उसकी आंखों से आँसू बह रहे थे, जो कृतज्ञता प्रकट कर रहे थे।
जब रघुनाथ का सम्मान हुआ तब निमाई आनन्द से झूम रहा था। वही निमाई बाद में महाप्रभु चैतन्य हुए । रघुनाथ ने अपने आपको उनके चरणों में समर्पित कर दिया और वह उनका प्रमुख शिष्य बन गया। यही कारण है कि आज भी बंगाल में महाप्रभु चैतन्य के नाम के साथ लोग रघुनाथ की भी जय बोलते हैं। .
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