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जैसा संग, वैसा रंग
शेखसादी अपने शिष्यों के साथ प्रातः परिभ्रमण हेतु जा रहे थे। वार्तालाप चल रहा था सत्संग के महत्त्व पर किन्तु शिष्यों को सत्संग का महत्त्व समझ में नहीं आ रहा था।
शेखसादी ने उसी समय मार्ग के सन्निकट लगे हुए गुलाब के फूल को देखा। उन्होंने उसी समय गुलाब के पौधे के नीचे एक मिट्टी का ढेला पड़ा हुआ देखा। उसे उठा लिया और शिष्य को देते हुए कहाजरा इसे सूंघो, इसमें कैसी गंध आ रही है।
एक शिष्य ने सूंघते हुए कहा-गुरुदेव ! इसमें गुलाब की महक आ रही है।
शेखसादी-वत्स ! मिट्टी तो निर्गन्ध होती है फिर यह गंध कहाँ से आई ?
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