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नैतिकता और राजाज्ञा
राजवैद्य चरक की विश्रुति भारत के एक अंचल से दूसरे अंचल तक फैल रही थी। उन्होंने आयुर्वेद जगत में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था । उन्हें राजा की ओर से विशेष अधिकार प्राप्त हुआ था कि वे बिना किसी भी संकोच के, बिना स्वामी की अनुमति के भी कोई भी वनस्पति ले सकते थे । वे नित नई वनस्पतियों का निरीक्षण करते और नित्य नूतन औष धियों का निर्माण करते रहते थे ।
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एक दिन वे अपने मुख्य शिष्य सोमशर्मा के साथ एक जंगल से दूसरे जंगल में घूम रहे थे । भयानक जंगल में एक खेत था और उसमें उन्होंने एक विचित्र पुष्प देखा । चरक के पैर वहीं पर रुक गये । वे उस फूल को लेना चाहते थे । सोमशर्मा ने निवेदन कियागुरुदेव ! यदि आप आदेश दें तो वह फूल में खेत में से तोड़कर ले आऊं ?
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