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परमात्मा के दर्शन
मेरा ऊंट खो गया है, उसकी अन्वेषणा करने के लिए आया हूँ।
इब्राहीम-मित्र ! इतने ऊंचे महल में ऊँट किस प्रकार आयेगा? महल में ऊँट खोजना क्या पागलपन नहीं है ?
मानवाकृति ने मुस्कराते हुए कहा-इब्राहीम ! तुम्हें मेरा पागलपन तो ज्ञात हो गया। जैसे ऊँचे महल में ऊँट का खोजना पागलपन है वैसे ही ऊँचे महल में बैठकर भगवान को ढूँढ़ना पागलपन नहीं है ? क्या कभी तूने इस पर भी चिन्तन किया है ?
इब्राहीम उसके मुँह को देखने के लिए ज्योंही उठा त्योंही वह मानवाकृति अंधकार में कहीं विलीन हो गई।
इब्राहीम रातभर करवटें बदलते रहे। उनकी नींद नष्ट हो चुकी थी। आगन्तुक के शब्द उनके कर्णकुहरों में गंजते रहे कि माया और वैभव के इस साम्राज्य में लिप्त रहकर परमात्मा के दर्शन नहीं किये जा सकते।
प्रातःकाल होते ही वे घोड़े पर बैठकर राजमहल को छोड़कर एकान्त जंगल में चल दिये। सारे राजकीय वस्त्राभूषण उतारकर फकीरी का वेष धारण कर
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