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दुःख का मूल : ममता
.. भन्ते ! मेरी प्रसन्नता का पारावार न रहेगा। मैं आनन्द विभोर होकर नाचूंगी।
बुद्ध---अच्छा, विशाखे ! जरा यह बताओ कि श्रावस्ती में प्रतिदिन कितने व्यक्ति मरते होंगे ?
विशाखा-भगवन् ! कम से कम एका मरम ही होगा।
बुद्ध-तो फिर तुम प्रतिदिन इसी प्रकार गीले वस्त्र, अस्त-व्यस्त बाल और मुहर्रमी सूरत बनाये रखना पसन्द करोगी?
विशाखा-नहीं भन्ते !
बुद्ध-जिसके जितने अधिक समे हैं उतने ही अधिक दुःख हैं, संसार में जिसका कोई सगा नहीं है उसको कोई भी दुःख नहीं है । दुःख का मूल ममता है, जहाँ ममता है वहाँ दुःख है, अतः सत्य-तथ्य समझ ।
विशाखा को नई दृष्टि मिल गई । उसका दुःख कपूर की तरह उड़ गया। बाद में जीवन में कैसे भी प्रसंग आए वह कभी भी शोकातुर नहीं हुई।
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