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दुःख का मूल : ममता
एक बार तथागत बुद्ध अपने शिष्यों के साथ श्रावस्ती के विहार में ठहरे हुए थे। उस समय उनकी परम भक्ता, विराट् वैभव की मालकिन विशाखा तथागत के दर्शनार्थ आई। पर आज उसके शरीर पर चमकते हुए वस्त्र और दमकते हुए आभूषण नहीं थे। उसने गीले वस्त्र धारण कर रखे थे, और सिर के बाल भी अस्त-व्यस्त थे। उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। तथागत बुद्ध ने यह सब देखा, उन्होंने साश्चर्य पूछाविशाखे ! आज तुम्हारी यह विचित्र वेशभूषा कैसे है ?
विशाखा ने धीरे से कहा-भन्ते ! आज मेरे पौत्र का देहान्त हो गया है।
बुद्ध-विशाखे! मैं एक बात तुम्हें पूछना चाहता है कि श्रावस्ती नगरी में जितने मनुष्य हैं उतने यदि तुम्हारे पुत्र और पौत्रादि हो जाएं तो कितनी प्रसन्नता
होगी?
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