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________________ जितना काम, उतना दाम पण्डित सदासुख जयपुर के निवासी थे। जैन दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान थे। ग्रन्थ लेखन की उनकी स्वाभाविक अभिरुचि थी। वे जयपुरनरेश सवाई रामसिंह जी के कोषाध्यक्ष थे। एक दिन किसी चुगलखोर ने राजा से यह शिकायत की कि पण्डित सदासुख अच्छी तरह से कार्य नहीं करते हैं, जब देखो तभी धार्मिक ग्रन्थ पढ़ते रहते हैं। राजा पण्डितजी की विद्वत्ता पर मुग्ध थे पर उनकी कार्य के प्रति शिथिलता व प्रमाद की बात उन्हें तनिक मात्र भी प्रिय नहीं थी। वे मध्याह्न के समय बिना पूर्वसूचना दिये कोषालय में पहुंचे। यकायक राजा को अपने सामने देखकर कर्मचारियों के पर के नीचे की जमीन खिसकने लगी। राजा ने आते ही सर्वप्रथम पं० सदासुखजी के बहीखाते और रजिस्टर देखने प्रारम्भ किये। किन्तु आदि से अन्त तक कही Jain Education InteFoat fonalte & Personal [email protected]
SR No.003194
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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