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गागर में सागर
पर भी स्खलना व भूल नहीं थी। इतना सुन्दर और व्यवस्थित कार्य था कि राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ, और बोला-पण्डितजी ! तुम्हारे कार्य से मैं अत्यन्त प्रसन्न है। आज से तुम्हें जो पारिश्रमिक मिलता है उससे अब सवाया मिलेगा।
पण्डित सदासुख ने बहुत ही नम्र शब्दों में निवेदन करते हुए कहा-आपकी अपार कृपादृष्टि मेरे पर है परन्तु एक प्रार्थना है ?
__राजा-बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है ? तुम चाहोगे उतना पारिश्रमिक बढ़ा दूंगा।
पण्डितजी-राजन् ! मैं चाहता हूँ कि इस समय मुझे जो पारिश्रमिक मिल रहा है उसमें से एक चौथाई पारिश्रमिक कम कर दिया जाय।
. राजा सहित सभी पण्डितजी की विचित्र प्रार्थना को सुनकर चकित हो गये। उन्होंने ऐसी विचित्र प्रार्थना अपने जीवन में प्रथम बार सुनी थी।
राजा-पण्डितजी ! तुम इस प्रकार की प्रार्थना किस अपेक्षा से कर रहे हो?
' पण्डितजी-राजन् ! अब से मैं प्रतिदिन दो घण्टे विलम्ब से दफ्तर में आना चाहता है। कारण यह है कि मैं एक ग्रन्थ लिख रहा हूँ और उसे शीघ्र पूर्ण करना चाहता हूँ, अतः राज्य को हानि न हो एतदर्थ
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