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न्यायपरायणता
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जीवित रहें, किन्तु कल कुछ भी हो गया तो मैं वे दो रुपये किससे वसूल करूँगा और मुझे दृढ़ आत्मविश्वास है कि आप कर्ज लेकर मरना पसन्द न करेंगे।
पत्र पढ़ते ही हजरत उमर की आँखें भर आई। और उन्होंने अपने प्यारे पुत्र से कहा-वत्स! इस समय तो नहीं अब अगले महीने पहले तेरी कमीज बनवाऊंगा।
एक बार उनका वही प्यारा पुत्र अनीति पर उतारू हो गया। तो न्याय के लिए उन्होंने पुत्र को कठोर दण्ड भी दिया।
यह थी उनकी न्यायपरायणता !
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