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गागर में सागर
में बहुत से गरीब उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। आवश्यकतानुसार उन्हें देकर जब वे घर पहुंचे तो पुत्र ने पुनः प्रार्थना की—पिताश्री ! अब तो मेरी कमीज बन जायगी न ?
उन्होंने अपनी जेब टटोली। पर सब कुछ खर्च हो चुका था। अतः उन्होंने कहा-वत्स ! इस माह नहीं, अगले माह अवश्य बना दूंगा। लड़के की प्रार्थना पर उनका हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने उसी समय खजांची को पत्र लिखा-मेरे अगले माह के वेतन में से दो रुपये काट लेना और इस समय मेहरबानी करके दो रुपये दे देना।
खजांची ने उस पत्र को पढ़ा। उसके मन में यह चिन्तन उद्बुद्ध हुआ-इसलाम धर्म के सर्वेसर्वा हजरत उमर ने ऐसा कैसे लिखा ? उसने उस पत्र के पीछे ही कुछ लिख दिया और आने वाले व्यक्ति को दे दिया।
- हजरत उमर ने जब पत्र खोलकर देखा तो उसमें लिखा था-मेरे अपराध को क्षमा करें। मैं दो रुपये पेशगी के रूप में नहीं दे सकता। क्योंकि जीवन क्षणभंगुर है। मैं नहीं चाहता कि आप कर्जा ले । मेरी तो यही मंगल कामना है कि आप हजार वर्ष
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