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गागर में सागर
उस व्यक्ति ने मुस्कराते हुए कहा-माँ ! जिसे तुम अपना दुश्मन मान रही हो वही मैं हूँ। मेरा नाम मुहम्मद है। पर तुम बिलकुल चिन्ता न करो। तुम्हें कोई खतरा न होगा।
बुढ़िया ठगी-सी उसे देखती रह गई। उसकी हृत्तन्त्री के तार झनझना उठे-ऐसा स्नेह-सौजन्य मूर्ति, दया का देवता जहाँ हो, वह स्थान मैं नहीं छोड़ सकती।
और वह पूनः मुहम्मद के साथ ही मक्का लौट आई। मुहम्मद के स्नेह और सद्भावना से उसका हृदय परिवर्तन हो चुका है।
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