________________
१२८
गागर में सागर
कि इतनी स्वल्प अर्थराशि से मेरी विदेश यात्रा किस प्रकार सुगम रीति से सम्पन्न हो सकेगी, पर नेहरूजी के उस लिफाफे ने उसके मानसिक संक्लेश को नष्ट कर दिया ।
यह थी नेहरूजी की साहित्यकारों के प्रति सन्मान की भावना |
Jain Education Internationalte & Personal Usev@rjainelibrary.org