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गागर में सागर
गलत चाल चल गया। तुम मेरी भूल को क्षमा कर दो। अब पुनः नये सिरे से खेल प्रारम्भ करेंगे ।
शिष्य नहीं चाहता था तथापि आचार्य की बात को वह टाल न सका । खेल पूनः प्रारम्भ हआ। कुछ देर तक आचार्य सही चाल चलते रहे, बाद में उन्होंने जानबूझकर गलत चाल पुनः चली। किन्तु आचार्य ने अपनी चतुरता से कलई नहीं खुलने दी। कुछ समय के बाद आचार्य ने पुनः कहा-वत्स ! इस बार भी मैं चाल चूक गया । इस बार भी में गलती कर चुका हूँ। तुम मुझे क्षमा कर दो। हम फिर से खेल प्रारम्भ करेंगे।
शिष्य के होंठ क्रोध से फड़फड़ाने लगे। उसने आचार्य की ओर रोष भरी दृष्टि से देखते हुए कहाआप बार-बार गलती करें और उसके लिए क्षमा मांगे। मैं क्षमा नहीं कर सकता । आप ही बताइए मैं आपको गलती सुधारने का कितनी बार अवसर दूँ ? यदि मैं इस प्रकार गलती करता तो क्या आप मुझे क्षमा कर देते ? यह तो खेल है। इसमें हारने वाले को पुनः पुनः क्षमा नहीं किया जा सकता। यह दांव मेरे हाथ लगा है। मैं इसे यों ही जाने नहीं दूंगा।
___ आचार्य ने मधुर मुसकान बिखेरते हुए कहावत्स ! तुम मेरी दुबारा गलती को भी क्षमा नहीं कर
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