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गलतियों का परिष्कार
एक आचार्य बहुत ही पहुँचे हुए योगी थे। वे बहुत ही शान्त प्रकृति के थे। किन्तु उनका शिष्य अत्यन्त क्रोधी था। वह बात-बात में गरम हो जाया करता था। आचार्य ने अनेक प्रयास किये किन्तु सफलता प्राप्त न हो सकी।
एक दिन आचार्य अपने शिष्य को समझाने के लिए उसके साथ शतरंज खेलने बैठ गए। आचार्य शतरंज खेलने में पूर्ण दक्ष थे तथापि उन्होंने जान-बूझकर गलत चाल चली। पर उन्होंने उसे व्यक्त होने न दिया। आचार्य को गलत चाल को देखकर शिष्य मन ही मन आह्लादित हो रहा था । आचार्य ने कुछ समय के पश्चात् कहा-वत्स ! असावधानी के कारण मैं
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