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उदारता
राजा भर्तृहरि अपनी रानी पिंगला की विषयासक्ति को देखकर विरक्त हो गये। वे सोचने लगे कि मैं जिसका चिन्तन करता हूँ, वह मेरे से विरक्त है, वह अन्य को चाहती है। वह जिसको चाहती है वह उसे न चाहकर दूसरी को चाहता है और वह भी उसे न चाहकर मुझे चाहती है। बड़ा विचित्र है यह संसार । इस संसार में रहना ही सत्य को विस्मृत होना है।
भर्तृहरि साधु बन गए। साधु बनने पर एक बार उन्हें पाँच दिन तक भिक्षा प्राप्त नहीं हुई । भूखे-प्यासे श्मशान में से होकर आगे जा रहे थे कि श्मशान में एक मुर्दा जल रहा था। उसकी चिता के पास ही आटे के तीन पिण्ड पड़े हुए थे। भर्तृहरि भूख से इतने व्याकुल हो चुके थे कि उन्होंने उन तीनों पिण्डों को
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