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गागर में सागर
मेरे पति शीघ्र ठीक हो सके। एक अनुभवी वैद्य ने कहा-महारानीजी ! यदि कोई व्यक्ति अपने मुँह से इस विष को चूस ले तो राजा साहब के प्राण बच सकते हैं।
राजा कर्णसिंह ने कहा- वैद्यराज! क्या कह रहे हैं ? मेरे लिए किसी के प्राण न लिये जायें। यह कहकर वे पुनः बेहोश हो गये।
रानी कलावती ने सोचा-राजा दयालु है । जो विष बाण को चूसेगा वह अवश्य ही मर जाएगा । हम दूसरों को जिला नहीं सकते तो मारने का भी हमें अधिकार नहीं है। राजा का यह कथन न्यायसंगत है। पर मैं पत्नी हूँ। मेरा भी कर्तव्य है-अपने प्राणों का उत्सर्ग कर पति के प्राणों की रक्षा करना।
जब राजा बेहोश था, रानी कलावती ने सारा विष चूस लिया। राजा स्वस्थ हो गया, पर रानी कलावती ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए विष के प्रभाव से प्राण त्याग दिये। जब राजा पूर्ण स्वस्थ हो गया तब लोगों ने राजा कर्णसिंह से कहा- राजन् ! आप दूसरा विवाह कर लीजिए ।
राजा ने उत्तर देते हुए कहा-जिस रानी ने मेरे
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