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________________ मुनिश्री देपाल : जीवन और कृतित्व डॉ० सनत्कुमार रंगाटिया पंद्रहवीं शताब्दी के अन्तिम चरणों में विद्यमान मुनिश्री देपाल का प्रचुर प्रमाण में साहित्य उपलब्ध होता है । कवि का अपरनाम देपा बताया जाता है । " स्वयं कवि ने अपने लिए 'देव' शब्द का उपयोग किया है । समग्र साहित्य में उनके जीवनविषयक संकेत का अभाव है । सर्वप्रथम श्रावक कवि ऋषभदास ने अपने 'कुमारपाल रास' (सं० १६७०) में उनका उल्लेख किया है आगि जे मोटा कविराय, तास चरण ऋषभाय । 'हंसराज, वाछो, देपाल, माल, हेमनी बुद्धि विसाल ! 1 3 तपागच्छ आम्नाय के श्री विजयसेनसूरि के समय में श्री कनकविजयजी के शिष्य श्री गुणविजयजी ने सं० १६८७ में विरचित ' कोचरव्यवहारी रास' में देपाल के जीवन के संबंध में इस प्रकार संकेत किया है * - ' गुजरात में स्थित आणहिलपुरपट्टण के निकट सलणपुर (शंखलपुर ) में वेदोशाह नामक वीशा प्रोग्वाट वणिक था। उनकी पत्नी का नाम बीरमदे और पुत्र का नाम कोचर था । तत्रस्थ बहिचर ग्राम में स्थित बहुचराजी माता के मन्दिर में पशुबलि होती थी । कोचर अत्यंत व्यथित था । कालान्तर में जब कोचर खंभात गया तब देसलहरा साहण श्रेष्ठ से उसका संपर्क हुआ । श्री सुमतिसाधुसूरिजी से प्रेरित साहण ने सुलतान से परामर्श करके कोचर को बारह गाँव का अधिकारी बनवाया जिससे बहुचराजी में अहिंसा स्थापित हुई। उसी समय देपाल दिल्ली से गुजरात आये थे । वे दिल्ली निवासी देसलहरा समरा और सारंग के आश्रित थे ।' OPP २. श्री देपाल - हस्त प्रत -- १. श्री मो० द० देसाई जैन गूर्जर कविओ भाग - १ पृ० ३०. - धन्नाशालिभद्र भाम, जंबुस्वामी चउपई, ३. श्री मो० द० देसाई जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स हेरॉल्ड- पृ० ३८५. ४. श्री विजय धर्मसूरि-- ऐतिहासिक रास संग्रह - भाग - १ पृ० २-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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