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________________ प्रदर्शित की है यद्यपि (१|१|११३) सूत्र के पहले शाकटायन सवकाल्यक अनुस्वार का विधान है तो भी उन्होंने अनुस्वार के अभाव की बात नहीं कही । हेम ने भी इस प्रक्रिया का अनुसरण कर शाकटायन का समर्थन किया है। पाणिनि के " शछोडटि" (अ० ८|४|६३) सूत्र पर 'छत्वममीति वाच्यम्' यह कात्यायन वार्तिक है । शाकटायन ने इस आधार पर 'शरछोsमि' (१|१|१४४) सूत्र ही बना डाला है । इस प्रकार शाकटायन ने कतिपय सूत्र अपने व्याकरण में कात्यायन के वार्तिकों को सूत्र रूप में दर्शाया है कात्यायन वार्तिक प्रादृहोढोढ्येषैष्येषु ( ६ | १|८९७ वा. ) प्रस्योढोढ्यूहेषैष्ये (१|१|८४ ) एवेऽनियोगे (१|१|८७) वोष्ठौती समासे (१|१८८) एवे चानियोगे पररूपं वक्तव्यम् (६६११९४ वा० ) ओत्वोष्ठयोः समासे वा पररूपं वक्तव्यम् (६।१ ९४ वा० ) हे परे वा (अ०८/३/२६) ये परे यवला वा (वा० ) नपरे नः ( अ० ८|३|२७ ) 'न पदान्ताट्टोरनाम्' (अ० ८२४१४२) अनाम्नवति नगरीणामिति वक्तव्यम् (वा० ) अक्षादू हिन्यां वृद्धिर्वक्तव्या स्वादौरेरियो बुद्धिर्वव्या (६|१|८९ वा० ) शाकटायन Jain Education International हिव्यनि (१|१|११२ ) टो: पदान्तेऽनाम्नगरी नवते (8181880) } स्वैरस्वैर्यक्षौहिण्याम् (११११८५) इस प्रकार शाकटायन ने अपने शब्दानुशासन में पाणिनि के सूत्रों पर कात्यायन के वार्तिक का निवेश कर ३७२ सूत्र रचकर लाघवपूर्णं दृष्टि को स्वीकार किया है तथा स्वकीय उद्भावना दर्शात हु ढंग एवं मौलिकता प्रस्तुत की है। वैज्ञानिक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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