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________________ उद्भट विद्वान कात्यायन ने स्वर, व्यञ्जन दोनों में ही परिगणित करने का निर्देश दिया है। महर्षि पतञ्जलि ने भी इसका पूर्ण समर्थन किया है। शाकटायन ने 'शषस अं अः क पर्' प्रत्याहार सूत्र रचकर अनुस्वार, विसर्ग, जिह्वामूलीय और उपध्मानीय को व्यञ्जनों में स्थान दिया है। जैनेन्द्र व्याकरण में भी अनुस्वार, विसर्ग, जिह्वामूलीय, और उपध्मानीय को व्यञ्जनों के अन्तर्गत माना है। यहाँ ऐसा लगता है कि शाकटायन इस स्थल पर पाणिनि की अपेक्षा जैनेन्द्र से ज्यादा प्रभावित हैं। शाकटायन का अनुस्वार आदि को व्यञ्जनों के अन्तर्गत स्वीकार किया जाना अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है। पाणिनीय व्याकरण के मूलाधार माहेश्वर सूत्र हैं। इन्हें अक्षर समाम्नाय, वर्णसमाम्नाय और प्रत्याहार सूत्र इत्यादि अनेक नामों से जाना जाता है । ये चौदह प्रत्याहार इस प्रकार हैं (१) अइउण् (२) ऋलुक् (३) एओङ (४) ऐओच् (५) हयवरट् (६) लण् (७) अमङणनम् (८) झभञ् (९) घढधष् (१०) जबगड़दश् (११) खफछठथचटतव् (१२) कपय् (१३) शषसर् (१४) हल शाकटायन व्याकरण में प्रत्याहार सूत्र उपलब्ध हैं। इनका मूलाधार भी पाणिनीय सूत्र ही है। किन्तु पाणिनीय सूत्रों में कुछ वर्ण-विपर्यय करके शाकटायन ने इस प्रकार से प्रत्याहार सूत्रों को बनाया (१) अइउण् (२) ऋक् (३) एओङ् (४) ऐओच् (५) हयवरलञ् (६) अमङणनम् (७) जबगडदश (८) झमघदधष (९) खफछठथट (१०) चटतव (११) कपय् (१२) शषसअंअःXक पर् (१३) हल इस प्रकार पाणिनीय व्याकरण में चौदह प्रत्याहार सूत्र हैं किन्तु शाकटायन शब्दानुशासन में १३ सूत्र हैं । महाभाष्य के द्वितीय आह्निक में वार्तिकार-कात्यायन ने 'ऋलुक्' सूत्र में लुकार का प्रत्याख्यान किया है। तदनुसार शाकटायन ने 'ऋलक' के स्थान पर 'ऋक' सूत्र रखा है। इस स्थल पर शाकटायन जैनेन्द्र से ज्यादा प्रभावित हैं। पाणिनि ने अइउण' और 'लण्' इन दो सूत्रों में दो बार णकार अनुबन्ध लगाया है। इन दो णकारों का उपादान क्यों किया है ? इस पर 'व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिः नइि संदेहादलक्षणम्' यह परिभाषा ज्ञापित की है। शाकटायन इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं। इन्होंने 'हयवरलञ्' इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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