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( ४३ )
३१. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ३, पृ० १२७ ३२. जैन आत्मानन्दसभा भावनगर ( गुजराती अनुवाद सहित ) वि० सं०२००५ में प्रकाशित
३३. जिनरत्नकोश, पृ० २४४
३४. वही; पृ० २४४ एवम् द्र० 'भारतीय संस्कृति के विकास में जैनधर्म का योगदान', पृ० १३५
३५. हस्तलिखित प्रति अग्रवाल दि० जैन मन्दिर मोतीकटरा आगरा में है । ३६. द्र० श्री परमानन्द शास्त्री द्वारा लिखित लेख ( अनेकान्त ) वर्ष ८, किरण १२ ३७. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० १५७
३८. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० १३९ ३९. द्र०, अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १४७ ४०. श्री पं० परमानन्द शास्त्री द्वारा लिखित 'अपभ्रंश भाषा का पासचरिउ और कविवर देवचन्द' लेख, अनेकान्त, वर्ष ११, किरण ४-५ जून-जुलाई१९५२, पृ० २११-२१२
४१. जैन शिलालेख संग्रह भाग १, लेखांक ५५, पद्य २५
४२. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० १८२ ४३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० १२१
४४. जिनरत्नकोश, पृ० २४१
४५. 'रसषिरवि संख्यायां सभायां दीपपर्वणि ।
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समर्पितमिदं वेलाकूले श्रीदेवकुपके ॥' - पार्श्वनाथचरित जैन सा० का वृद् इतिहास भाग ६० पृ० १२१ से उद्धृत
४६. वही, पृ० १२१
४७. संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, भाग १, पृ० ४१८
४८. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० १२१
४९. वही, पृ० १२३
५०. वही, पृ० १२१
५१. श्री सर्वानन्दसूरि भुजगगगनशमीगर्भशुभ्रांशुवर्षे', चन्द्रप्रभचरित्र, प्रशस्ति
पद्य - ७ (वही, पृ० ९८ से उद्धृत )
५२. जिनरत्नकोश, पृ० २४५
५३. द्र०, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० ९८
५४. श्री यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, बी० नि० सं० २४३८.
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