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________________ ( ४२ ) १३. जिनरत्नकोश, पृ० २४६ १४. द्र०, लेखक का शोधप्रबंध 'वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरित का समीक्षा. त्मक अध्ययन, अध्याय ३ १५. शाकाब्दे नगवाधिरन्ध्रगणने संवत्सरे क्रोधने मासे कार्तिकनाम्नि बुद्धिमहिते शुद्ध तृतीयादिने । सिंहे पाति जयादिके वसुमती जैनीकथेयं मया निष्पत्ति गमिता सती भवतु वः कल्याणनिष्पत्तये । -पार्श्वनाथचरित, प्रशस्तिपद्य ५ १६. द्र०, डॉ० मंगलदेव शास्त्री द्वारा लिखित 'संस्कृतसाहित्य के विकास में जैन विद्वानों का योगदान' लेख, वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ३९४ १७, द्र०, जिनरत्नकोश, पृ० २४६ १८. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ५३३ की पादटिप्पणी १९. 'श्रीमद्रविडसंघेऽस्मिन् नन्दिसंघेऽस्त्यगलः । अन्वयो भाति......... -जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, लेखांक २८८ २०. पार्श्वनाथचरित, प्रशस्तिपद्य १-४ २१. विशेष जानकारी के लिए द्रष्टव्य, लेखक का शोधप्रबन्ध २२. प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी से १९६५ ई० में प्रकाशित २३. 'अट्ठारहसंधिउ एह पुराणु तेसट्टिपुराणे महापुराणु । सयति ण्णि दतोत्तर कडवायहँ णाणाविहछंदसुहावयाहँ । तेतीस सयई तेवीसयाई अक्खरई किंपि सविसे ससाई। एयएत्थु सत्थि गंथहा पमाणु फुडु पयडु असेसु विकयपमाणु । -पासणाहचरिउ, १८:२० २४. पासणाहचरिउ, संधि १८, कड़वक २२ २५. णय सय णउआणउये कत्तियमासे अमावसीदिवसे । __ रइयं पासपुराणं कइणा इह पउमणामेण ।।-वही, प्रशस्ति-४ २६. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० १५७, एवम् तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग० ३, पृ० ९७ २७. द्र०, तीथंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ३, पृ० ९७ एवम् 'संस्कृतकाव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान' पृ० १७९ २८. तीथंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग० ३ पृ० २९ २९. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियां, पृ० ३५ ३०. जम्बुसामिचरिउ, १।४-५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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