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नाम भट्टारक प्रभाचन्द्र और गुरु के गुरु का नाम ज्ञानभूषण था । ७९ इसकी एक हस्तलिखित प्रति इटावा के सरस्वती भण्डार में है | ०
पार्श्वनाथपुराण में वादिचन्द्र ने अपने को प्रभाचन्द्र के पट्ट का अधिकारी बतलाते हुए उन्हें अनेक दार्शनिकों से महान बताया है तथा पार्श्वनाथपुराण की रचना वि० सं० १६४० ( १५८३ ई० ) में कार्तिक शुक्ला पंचमी को वाल्मीकनगर में करने का उल्लेख किया है ।" इस प्रकार कवि का रचनाकाल ईसा की १६ वीं शताब्दी का अन्तिम चरण है ।
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१९. पार्श्वनाथचरित २ – उदयवोरगणि
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यह आठ सर्गात्मक काव्य है जिसमें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का चरित हेमचन्द्राचार्य कृत त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित के अनुसार संस्कृत गद्य में लिखा गया है । कथानक के बीच-बीच में प्रसिद्ध ग्रन्थों की सूक्तियों को उद्धृत किया गया है तथा प्रसङ्गानुसार अवान्तर कथाओं का भी समावेश हुआ है ।
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उदयवीरगणितपागच्छीय हेमसूरि के प्रशिष्य और संघवीर के शिष्य थे । हेमसूरि जगच्चन्द्रसूरि के प्रशिष्य और हेमविजयसूरि के शिष्य थे । उक्त परम्परा का उल्लेख उदयवीरगणि ने पार्श्वनाथ चरित को सर्गान्तपुष्पिका में स्वयं किया है । 43 प्रशस्ति के अनुसार पार्श्वनाथचरित का रचनाकाल वि० सं० १६५४ ( १५९७ ई० ) है | ४
२०. पार्श्वपुराण - चन्द्रकीर्ति
यह पन्द्रह सर्गात्मक काव्य है जो २७१० ग्रन्थाग्रप्रमाण है । इसकी रचना वि० सं० १६५४ ( १५९७ ई० ) में श्रीभूषण भट्टारक के शिष्य चन्द्रकीर्ति ने बैसाख शुक्ला सप्तमी को गुरुवार के दिन देवगिरि के पार्श्वनाथ जिनालय में की थी । इसकी एक हस्तलिखित प्रति श्री ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन बम्बई में है । ६
चन्द्रकीर्ति के गुरु श्रीभूषण भट्टारक काष्ठासंघीय नंदीतटगच्छ के भट्टारक थे । वाचस्पति गैरोला ने उनकी परम्परा को इस प्रकार बतलाया है - रामसेन > नेमिषेण > विमल सेन > विमलकीर्ति > विश्वसेन > विद्याभूषण > श्रीभूषण । श्रीभूषण के उत्तराधिकारी के रूप में पद्मकीर्ति का उल्लेख किया है । ७ किन्तु प्रो० विद्याधर जोहरापुरकर ने काष्ठासंघ
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