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पद्ममेरु के शिष्य थे । ये नागौरी तपागच्छीय विद्वान् थे। धातुतरंगिणी के रचयिता हर्षकीति इन्हीं की परम्परा में के थे। उन्होंने धातुतरंगिणो में इनका परिचय इस प्रकार दिया है।
'साहेः संसदि पद्मसुन्दरगणिजित्वा महापण्डितं सौमग्रामसुखासनाधकबरश्रीसाहितो लब्धवान् । हिन्दूकाधिपभालदेवनृपतेर्मान्यो वदान्योऽधिकं
श्रीमद्योधपुरे सुरेप्सितवचाः पद्माहयं पाठकम् ।।७३ इससे स्पष्ट होता है कि पद्मसुन्दर ने अकबर बादशाह की सभा में किसी महान् पण्डित को परास्त किया था और अकबर ने उन्हें सम्मानित किया था। उन्हें रेशमी दुपट्टा, ग्राम और सुखासन भेंट में दिया था । वे हिन्दू राजा मालदेव ( जोधपुर नरेश ) द्वारा भी सम्मानित थे। __रायमल्लाभ्युदय नामक ग्रन्थ की रचना इन्होंने दिगम्बर अग्रवालजातीय विद्वान् रायमल्ल के अनुरोध पर वि० सं० १६१५ ( १५५८ ई०) में की थी।७५ अतएव उनका रचनाकाल ईसा को सोलहवीं शताब्दी का मध्य माना जा सकता है। १७. पार्श्वनाथ चरित७६ -हेमविजयगणि
यह काव्य छः सर्गों में विभक्त है, जिनमें क्रमशः ४६९, ३०५, ६३५, ६८३, ४७४ और ४७५ कुल ३०३६ पद्य हैं । अन्त में १६ प्रशस्तिपद्य हैं। सर्गान्तपुष्पिका से ज्ञात होता है कि हेमविजयगणि कालविजयगणि के शिष्य थे, जो भट्टारक हीरविजयसूरि और विजयसेनसूरि की परम्परा से संबद्ध थे।७७ इस ग्रन्थ का अपना कोई विशेष महत्त्व नहीं है, क्योंकि इसमें कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के पार्श्वनाथ चरित अंश को हूबहू नकल उतारी गई है । ___ कवि ने ग्रन्थप्रणयन और परिमाण का उल्लेख प्रशस्ति में स्वयं किया है। उनके अनुसार पार्श्वनाथचरित की रचना वि० सं० १६६२ ( १५७५ ई० ) में हुई थी तथा ग्रन्थ ३१६० अनुष्टुप्प्रमाण है।७८ १८. पादपुराण -वादिचन्द्र ____ यह १५०० श्लोक प्रमाण पौराणिक शैली में लिखा गया काव्य है। कवि वादिचन्द्र पवनदूत के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं । इनके गुरु का
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