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( ३३ ) जम्बुसामिचरिउ के रचयिता महाकवि वीर के पिता का नाम देवदत्त था। देवदत्त अपभ्रंश के अच्छे विद्वान् थे। महाकवि वीर ने अपभ्रंशसाहित्य में अपने को प्रथम, पुष्पदन्त को द्वितीय और अपने पिता देवदत्त को तृतीय स्थान प्रदान किया है ।३० सम्भव है, यही देवदत्त पासणाहचरिउ के रचयिता हों। यदि पासणाहचरिउ के रचयिता देवदत्त और महाकवि वीर के पिता देवदत्त अभिन्न हैं तो उनका समय ईसा की १०वों शताब्दी का अन्तिम भाग माना जा सकता है। क्योंकि महाकवि वीर के जम्बुसामिचरिउ का रचनाकाल १०१९ ई० मान्य है।३१ ५. पासणाहरिउ -देवभद्रसूरि
यह प्राकृतभाषा में लिखित गद्यपद्यात्मक ग्रन्थ है। इसमें ५ प्रस्ताव हैं, जिनका परिमाण ९००० ग्रन्थाग्रप्रमाण है । 3 इस पार्श्वनाथचरित में तीर्थकर पार्श्वनाथ के केवल छः भवों का ही वृत्तान्त वणित है, जबकि प्रायः अन्य सभी पार्श्वनाथचरितों में ९ पूर्वभवों सहित वत्तान्त वणित है । कथानक में पर्याप्त परिवर्तन होने पर भी कोई कमी प्रतीत नहीं होती है। ___ आचार्य देवभद्रसूरि का दीक्षा के पूर्ण गुणचन्द्रगणि नाम था । इसीलिए भ्रान्तिवश जिनरत्नकोश में देवभद्र के आगे भी गणि जोड़ दिया गया है। इनके गुरु का नाम प्रसन्नचन्द्र और सन्मति उपाध्याय था। ये दोनों अभयदेवसूरि के शिष्य थे। इन्होंने पासणाहचरिउ की रचना वि० सं० ११६८ ( ११११ ई० ) में की थी।३४ अतएव इनका समय ग्यारहवीं शती का उत्तरार्ध एवम् बारहवीं शती का पूर्वार्ध माना जा सकता है। ६. पासणाहचरिउ'५-विबुध श्रीवर
यह अपभ्रंश भाषा में लिखित एक पौराणिक महाकाव्य है । १२ सन्धियों में विभक्त इसकी कथावस्तु परम्पराप्राप्त है। आकार की दृष्टि से यह २५०० अनुष्टुप्प्रमाण है। विविध छन्दों में आलंकारिक भाषा में निबद्ध यह महाकाव्य काव्यत्व की दृष्टि से उत्तमकोटि का है। नदियों, नगरों आदि का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया गया है।
संस्कृत और अपभ्रंश साहित्य के अवेक्षण से ७ श्रीधर नामक विद्वानों का पता चलता है । ६ किन्तु पासणाहचरिउ में प्रदत्त प्रशस्ति में इनका
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