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________________ ( ३२ ) होने से उनका समय ईसा की दसवीं शताब्दी का उत्तरार्ध एवम एकादश शताब्दी का पूर्वार्द्ध निर्विवाद है।" . ३. पासणाहचरिउ२२---पद्मकीर्ति अपभ्रंश भाषा में लिखित यह पाश्र्वनाथचरित्र १८ सन्धियों में विभक्त है । इसमें विविध छन्दों में लिखित ३९० कड़वक तथा लगभग ३३२३ पंक्तियाँ हैं । ग्रन्थकार ने ग्रन्थ के इस परिमाण का उल्लेख स्वयं किया है ।२3 कवि ने परम्पराप्राप्त कथानक को ही अपनाया है। काव्यतत्त्वों के साथ ही जैन सिद्धान्तों का भी विरतृत विवेचन होने से यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आचार्य पद्मकीर्ति आचार्य माधवसेन के प्रशिष्य तथा जिनसेन के शिष्य थे । ४ पासणाहचरिउ की प्रशस्ति में कवि ने ग्रन्थ का रचनाकाल सम्बत् ९९९ कार्तिक मास की अमावस्या उल्लिखित किया है। ५ किन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि यह सम्वत् शक है या विक्रम । दक्षिण भारत में प्रायः शकसम्वत् ही माना जाना चाहिये। इस प्रकार ग्रन्थ का रचनाकाल शक सं०९९९ (१०७७ ई०) ठहरता हैं। डा० हीरालाल जैन एवम् डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने एक स्थल पर पासणाहचरिउ का रचनाकाल ९९२ वि० सं० ( ९३५ ई० ) उल्लिखित किया है।९६ वहीं डा० नेमिचन्द्र शास्त्री तो यह भी संभावना कर डालते हैं कि नादिराज ने अपने पाश्र्वनाथचरित की रचना ( १०२५ ई०) में पद्मकीर्तिकृत पासणाहचरिउ का भी अध्ययन किया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। पता नहीं उक्त दोनों विद्वानों ने वि० सं० ९९२ कैसे लिख दिया जबकि ग्रन्थकार स्वयं सम्वत् ९९९ का उल्लेख करते हैं। यही नहीं, अन्य स्थल पर डा० नेमिचन्द्रशास्त्री स्वयं ही पद्मकोति के समय पर विचार करते हए पासणाहचरिउ की समाप्ति विभिन्न प्रमाणों के आधार पर शक सं० ९९२ ही स्वीकार करते हैं । २८ अतः यह निविवाद सिद्ध है कि पद्मकीतिकृत पासणाहचरिउ वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरित से पश्चाद्वर्ती है। ४, पासणाहरिउ-देवदत्त ___ अपभ्रंश के चरितकाव्यों में डा० देवेन्द्रकुमारशास्त्री ने देवदत्त के पासणाहचरिउ का उल्लेख किया है । ६९ इनकी कृति और इनका स्वयं का परिचय उपलब्ध नहीं होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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