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________________ ८० श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना ____एक बार की घटना है। कौशाम्बीपति महाराज शतानीक को मृत्यु के बाद राजकुमार उदायन बालक था, इसलिए शासन सूत्र का संचालन स्वयं महारानो मृगावती कर रही थी। महारानी मृगावती राजनीति में हो दक्ष नहीं, अत्यन्त धार्मिक भी थी, और अपने युग की अद्वितीय सुन्दरी भी। उज्जयिनीपति चन्द्रप्रद्योत सत्ता और सुन्दरी को पाने के लिए भूखे भेड़िये की तरह चारों ओर लपक रहा था। अपने युग का वह पराक्रमी कितु चरित्रहीन सम्राट गिना जाता था। चन्द्रप्रद्योत ने एक तीर से दो शिकार का यह अवसर देखा-सत्ता भी हाथ लगेगी, और युगसुन्दरी मृगावती भी। उसने कौशाम्बी पर आक्रमण करदिया, नगरी को चारों ओर से घेर लिया। वत्स देशवासियों के लिए यह सिर्फ राजसत्ता का प्रश्न ही नहीं रहा, अपितु अपने देश की नारी की इज्जत का प्रश्न भी बन गया। कुलीन रमणियाँ इस आक्रमण की अन्तनिहित भावना से भयभीत थी, और वीर योद्धा हथेली पर जान रखकर इसका जवाब दे रहे थे। नर-रक्त से भूमि रंगी जा रही थी, पर कोई भी निर्णायक उत्तर नहीं मिल रहा था। तीर्थंकर महावीर ने जब यह भीषण नर-संहार और उसके भीतर रहस्य की तरह छिपी एक नारी के सतीत्व पर आक्रमण की दुर्दान्त लालसा को देखा, तो वे उग्र विहार करके कौशाम्बी की ओर बढ़ गए। __ कौशाम्बी के द्वार बन्द थे। शत्रु सेना घेरा डाले चारों ओर पड़ी थी। नगर का परिसर युद्धभूमि बना हुआ था। तीर्थंकर महावीर युद्धभूमि की परवाह किए बिना कौशाम्बी के उद्यान में आकर ठहर गए। महारानी मृगावती को जब तीर्थकर के आगमन की सूचना मिली तो उसने अपूर्व साहस करके नगर के द्वार खुलवा दिए और स्वयं तीर्थंकर की धर्म देशना सुनने गई। आक्रांता चन्द्रप्रद्योत भी उस धर्म देशना में आया। तीर्थंकर महावीर ने चन्द्रप्रद्योत को लक्ष्य करके कुछ इस तरह उपदेश किया कि उसके अन्तःकरण का कालुष्य धुलने लगा। वह अपने औद्धत्य और अविवेक पर मन-ही-मन लज्जित हो उठा और तभी अवसर पाकर महारानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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