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अनेकान्तवाद
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या न हो, किन्तु आँखों में गुस्से की मशाल अवश्य होती है । संसार अपनी जलती हुई देह को क्षीरोदक से शीतल करने को बेचैन है, किन्तु तन को शीतल करने से पहले उसे मन को शीतल करना चाहिए और मन की शीतलता की राह दुराग्रह के त्याग में है, दूसरों को झुंझलाने की क्रूरता से बचने में है, सत्य की राह पर आने में है, सत्य की राह पर आये बिना यह नहीं मिल सकती । और, सत्य की राह पर आये हुए आदमी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह किसी भी अवस्था में दुराग्रह या हठ नहीं करता ।
सहिष्णुता, उदारता, सामाजिक संस्कृति, अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और अहिंसा - ये एक ही सत्य के अलग-अलग नाम हैं। असल में यह भारतवर्ष की सबसे बड़ी विलक्षणता का नाम है, जिसके अधीन यह देश एक हुआ है और जिसे अपनाकर सारा संसार एक हो सकता है । अनेकान्तवाद वह है, जो दुराग्रह नहीं करता । अनेकान्तवाद वह है, जो दूसरों के मतों को भी आदर से देखना और समझना चाहता है । अनेकान्तवाद वह है, जो समझौते को अपमान की वस्तु नहीं मानता । अशोक और हर्षवर्द्धन अनेकान्तवादी थे, जिन्होंने एक धर्म में दीक्षित होते हुए भी सभी धर्मों की सेवा की । अकबर अनेकान्तवादी था, क्योंकि सत्य के सारे रूप उसे किसी एक धर्म से दिखाई नहीं दिए, अतः सम्पूर्ण सत्य की खोज में वह आजीवन सभी धर्मों को टटोलता रहा । परमहंस रामकृष्ण अनेकान्तवादी थे, क्योंकि हिन्दू होते हुए भी उन्होंने इस्लाम और ईसाइयत की साधना की थी और गाँधीजी का तो सारा जीवन ही अनेकान्तवाद का उन्मुक्त
अध्याय था 1
भारत में अहिंसा के सबसे बड़े प्रयोक्ता जैन मुनि हुए हैं, जिन्होने मनुष्य को केवल वाणी और कार्य से ही नहीं, प्रत्युत विचारों से भी अहिंसक बनाने का प्रयत्न किया। किसी भी बात पर यह मान कर अड़ जाना कि यही सत्य है तथा बाकी लोग जो कुछ कहते हैं, वह सबका सब झूठ और निराधार है, विचारों की सबसे भयानक हिंसा है । मनुष्य को इस हिंसा के पाप से बचाने के लिए ही जैन मुनियों ने अनेकान्तवाद का सिद्धान्त निकाला, जिसके अनुसार प्रत्येक सत्य के अनेक पक्ष माने गये हैं, तथा यह सही भी है कि हम जब जिस पक्ष
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