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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना चाहिए कि वे सभी प्राणियों को अपने समान समझ । २७ इस विश्व में अपने प्राणों से प्यारी दूसरी कोई वस्तु नहीं है। इसलिए मानव जैसे अपने ऊपर दयाभाव चाहता है, उसो प्रकार दूसरों पर भी दया करे । २८ दयालू आत्मा हो सभी प्राणियों को अभयदान देता है, और उसे भी सभी अभयदान देते हैं।२९ अहिंसा हो एकमात्र पूर्ण धर्म है। हिंसा, धर्म और तप का नाश करने वालो है । ३० अतः यह स्पष्ट है कि वैदिक धर्म भो अहिंसा को महत्ता को एक स्वर से स्वीकार करता है। इस्लामधर्म में अहिंसा-भावना :
इस्लाम धर्म की अट्टालिका भी अहिंसा की नींव पर टिकी हुई है। इस्लाम धर्म में कहा गया है- "खुदा सारी दुनिया (खल्क) का पिता (खालिक) है। विश्व में जितने प्राणी हैं, वे सब खुदा के पुत्र (बन्दे) हैं।' कुरानशरीफ को शुरूआत में हो अल्लाहताला खुदा' का विशेषण दिया है-"विस्मिल्लाह रहिमानुरंहीम"- इस प्रकार का मंगलाचरण देकर यह बताया गया है कि सब जीवों पर रहम करो।
मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी हजरत अली साहब ने कहा है- "हे मानव ! तू पशु-पक्षियों की कब्र अपने पेट में मत बना" अर्थात् पशु-पक्षियों को मारकर उनको अपना भोजन मत बनाओ। इसी प्रकार 'दीन इलाही' के प्रवर्तक मुगलसम्राट अकबर ने कहा
२७. प्राणा ययात्मनोऽभीष्टा: भूतानामषि वं तथा । आत्यौपम्येन गन्तव्यं बुद्धिमद्भिर्महात्मभिः ।।
-महाभारत-अनुशासनपर्व, २१३१६ २८. नहि प्राणात् प्रियतरं लोके किञ्चन विद्यते । तस्माद् दयां नरः कुर्यात् यथात्मनि तथा परे ।।
- महाभारत-अनुशासनपर्व, ११६१८ २६. अभयं सर्वभूतेम्यो यो ददाति दयापरः । अभयं तस्य भूतानि ददतीत्यनुशुश्रमः ॥
-महाभारत-अनुशासनपर्व, ११६।१३ ३०. अहिंसा सकलो धर्मः।
-महाभारत-शान्तिपर्व ।
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