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________________ श्रमण संस्कृति का अहिंसा दर्शन एवं विश्वधर्म-समन्वय ३७ मन की वृत्तियाँ और अहिंसा : निवृत्ति और प्रवृत्ति के मध्य में वृत्ति है। वृत्ति का अर्थ हैचेतनाभाव। यही निर्मल-चेतना भाव मन को तरंगित करता है। अहिंसा इन्हीं उदात्त एवं कल्याणकारी चेतना-तरंगों के आधार पर जीवन की स्थूल व्यवहार धारा में प्रवहमान विधि-निषेधों के रूप में प्रकट होती है । इसे ही हम प्रवृत्ति और निवृत्ति कहते हैं। धरती के समग्र अध्यात्मवादी एवं मानवतावादी दशन व्यवहार के स्थूल विधि-निषेधों के साथ अहिंसा का सम्बन्ध स्थापित नहीं करते हैं। मानवमन की मूल पवित्र वृत्ति के साथ ही अहिंसा को सम्बन्धित करते हैं। यही वृत्ति जीवन है। यही अहिंसा का बोज है। यही सब कुछ है। यदि यह नहीं है तो कुछ भी नहीं है। अहिंसा के क्रान्तद्रष्टा ऋषि उक्त बीज की जितनी चिन्तना करते हैं, उतनी इधर-उधर के विधि-निषेधरूप फल, फूल और टहनियों की नहीं। बाह्य-व्यवहार के आधार पर खड़े किए गये अहिंसा के विधि-निषेध देश, काल तथा व्यक्ति की स्थिति विशेष के अनुसार बदलते रहते हैं, मूल बीज नहीं बदलता है। कित मध्यकाल के सामाजिक व्यवस्थापक-चाहे वे धार्मिक रहे हो अथवा राजनीतिक -अहिंसा को, उसकी.मौलिक सूक्ष्मता से पकड़ नहीं सके हैं । निवृत्ति और प्रवृत्ति के स्थूल परिवेश में ही अहिंसा को मानने और मनवाने के आसान तरीके अपनाते रहे और यथाप्रसंग तात्कालिक समाधान निकालते रहे। किंतु हिंसा की समस्या ऐसी नहीं थी, जो प्रचलित परम्परा के स्थूल चिन्तन से एवं विधि-निषेध के भावहीन विधानों से समाधान पा जाती। वह नये-नये रूपों में प्रकट होती रही और मानव-जीवन के सभी पक्षों को दूषित करती रही। यही कारण है कि हजारों वर्षों से समस्या समस्या ही बनी रही। कोई भी समाधान उभरते प्रश्नों को मिटा नहीं सका। यदि हम इधर-उधर के विकल्पों में न उलझ कर अहिंसा की मूल भावना को समझने का प्रयत्न करें, तो आज भी अहिंसा के मूल केन्द्रस्वरूप आन्तरिक वृत्ति पर अहिंसक समाज की रचना हो सकती है। मैं यह स्पष्ट रूप से कह सकता हूँ कि अहिंसा के आधार पर परस्पर सहयोगी समाज की रचना के लिए निवृत्ति और प्रवृत्ति के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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