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________________ २२२ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना रचनाएँ की हैं । यहाँ दक्षिण की भाषाओं-तमिल एवं कन्नड़ में जैन साहित्यकारों के योगदान पर संक्षिप्त दृष्टि डालेंगे। तमिल भाषा और साहित्य तमिल भाषा द्राविड़-भाषा-परिवार की सर्वाधिक प्राचीन भाषा है। यों इसके उदभव काल के विषय में अभी ठोक-ठोक पता नहीं चल सका है। किंतु, बहत से विद्वान इसे ईस्वी सन से शताब्दियों पूर्व को समृद्धतम भाषा मानते हैं । तमिल के सम्पूर्ण साहित्य को तीन कालों-संघकाल, शैशवकाल और अर्वाचोनकाल के रूप में विभाजित कर सकते हैं। ईस्वो पूर्व पंचम शताब्दी से लेकर ईस्वी सन ५ वों-छठी शताब्दी तक के एक हजार वष के समय का संघकाल माना गया है । यही काल प्रमुखतः जैन-साहित्य-काल का रहा है। तमिल के इस मूल को जैन साहित्यकारों ने ही अपनो बहुविध साधना द्वारा सोंचा था। , यह जैनों के हो प्रयत्नों का फल था कि दक्षिण में नये आदर्शों, नये साहित्य और नये भावों का संचार हआ।२८ जैन लोग बड़े विद्वान् ओर ग्रंथ रचयिता थे। वे साहित्य और कला प्रेमी थे। जैनों की तमिल सेवा तमिल प्रदेशवासियों के लिए अमुल्य है। तमिल भाषा में संस्कृत शब्दों का उपयोग पहलेपहल सबसे अधिक जैनों ने ही किया। उन्होंने संस्कृत शब्दों को उच्चारण को सुगमता को दृष्टि से यथेष्ट रूप से बदला भी है। कुरल के पश्चाद्वर्ती युग में प्रधानतः जैनों की संरक्षता में तमिलसाहित्य अपने विकास की चरम सीमा तक पहुँचा। तमिल साहित्य को उन्नति का वह सर्वश्रेष्ठ काल था । वह जैनों की प्रतिभा का समय था । २९ __ जैन साहित्यकारों द्वारा प्रणीत कतिपय ग्रंथ बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं। यथा-तोलकाप्पियम, तिरुक्कुरल, नालडियार, शिलप्पदिकारम्, बलैयापति और जीवक चिंतामणि आदि । 'जीवकचिंतामणि' तमिल भाषा का सर्वोत्कृष्ट काव्य है। तमिल में पाँच लघुकाव्य की भी २८. A Literary History of India. २६. रामस्वामी आय्यंगार For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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