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________________ २१६ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना पुर तथा २१. टौंक । इस राज्य के लिए जार्ज टॉमस ने सन् १८५७ में राजपूताना १२ नाम का प्रयोग किया। उसके उपरान्त कर्नल टॉड ने अपने इतिहास में राजपूताना को राजस्थान के नाम से संबोधित किया२० पुराकाल में इस प्रदेश के भिन्न-भिन्न भूखंडों के भिन्न-भिन्न नाम थे। जैसे-उत्तरी भाग का नाम जांगल, पूर्वी भाग का नाम मत्स्य, दक्षिणी-पूर्वी का शिविदेश, दक्षिण का मेदपाट, बागड़, प्राग्वाट, मालव एवं गुर्जरत्रा, पश्चिम का मद, माडबल्ल, त्रवणी, तथा मध्यभाग का अर्बुद और सपालदक्ष२१ साल्व जनपद २२ तथा पारियात्र मंडल २३ भी इस प्रदेश के ही अंग थे। अधुनातम स्थिति में यह प्रदेश प्राकृतिक दृष्टि से दो भागों में विभक्त है, जिसे अरावली पर्वत विभाजित करता है--प्रथम, उत्तर-पश्चिमी भाग जिसके अंतर्गत बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर तथा जयपुर का कुछ भाग जिन्हें समग्र रूप से मारवाड़ अथवा मरुदेश कहते हैं । तथा दूसरा, दक्षिणी-पूर्वी भाग, जिसके अंतर्गत बाको सभी देशो राज्य तथा अजमेर-मेरवाड़ा के राज्य सम्मिलित हैं । और दोनों भागों को राजस्थान राज्य के नाम से संबोधित किया जाता है, तथा इसो राज्य के नामसाम्य के अनुसार इस राज्य की भाषा को राजस्थानी भाषा कहते हैं। राजस्थानी भाषा और साहित्य के विकास में जितना अन्य साहित्यकारों ने योगदान दिया है, जैन साहित्यकारों का योगदान उसमें अपना गौरवपूर्ण स्थान रखता है। __राजस्थानी भाषा में वज्रसेन सूरि प्रणीत 'भारतेश्वर-बाहुबलिघोर' पुरानी राजस्थानी की प्राचीनतम रचना है। इसी प्रकार शालिभद्र सूरि रचित 'भरतेश्वर-बाहुबलीरास' नामक खंडकाव्य है जो १६. विलियम फ्रेंकलिन मिलिट्री मेमाउर्स आव मिस्टर जार्ज ट मस-४०३४७ २०: Annals and Antiquities of Rajsthan, Part I २१. विजयराजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ पृष्ठ ७१८ तथा पृथ्वीसिंह मेहता : हमारा राजस्थान २२. डा० वासुदेवशरण अग्रवाल : 'साल्व जनपद' -राजस्थान भारती, भाग ३, अंक ३ -४ २३. पृथ्वीसिंह मेहता : हमारा राजस्थान, पृष्ठ २०-२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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