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________________ २०२ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना आगम शब्द मूलतः शास्त्र के अभिधार्थ में प्रयुक्त हुआ है । आगम शब्द का अर्थ है-जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो।' जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान हो, वह आगम है।१० आप्त पुरुषों का कथन अर्थात् आप्तकथन आगम है।११ आप्त पुरुष उन्हें कहा जाता है जिन्होंने राग-द्वेष को जीत लिया है, वह जिन तीर्थंकर सर्वज्ञ भगवान् आप्त हैं, और उनका उपदेश एवं वाणी ही जैनागम है । १२ ____सम्पूर्ण आगम साहित्य को अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य दो खण्डों में विभक्त किया गया है। अंग साहित्य की संख्या के सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर सभी एकमत हैं । सभी अंगों की संख्या १२ स्वीकारते हैं। परन्तु अंग बाह्य आगमों की संख्या के सम्बन्ध में यह बात नहीं है, उसमें मत वैभिन्न्य है। यही कारण है कि आगमों की संख्या कितने हो ८४ मानते हैं, कोई-कोई ४५ मानते हैं और कितने ही ३२ मानते हैं। नन्दोसूत्र में आगमों की जो विस्तृत सूची दो गई है, वे सभो आगम सम्प्रति उपलब्ध नहीं हैं । द्वादश अंग जो सर्वमान्य हैं, ये हैं-१. आचार, २. सूत्रकृत, ३. स्थान, ४. समवाय, ५. भगवती, ६. ज्ञाताधर्मकथा ७. उपासक दशा, ८. अन्तकद, ६. अनुत्तरोपपा तिक, १०. प्रश्न व्याकरण, ११. विपाक और १२. दृष्टिवाद । ६. आगम्यन्ते मर्यादयाऽवबुद्धयन्तेऽर्थाः अनेनेत्यागमः । -रत्नाकरावतारिका वृत्ति १०. आ-अभिविधिना सकल श्रुत विषयव्याप्ति रूपेण, मर्यादया वा यथावस्थितप्ररूपणारूपया गम्यतेपरिच्छिद्यन्ते अर्थाः येन स आगमः । -आवश्यक मलय गिरि वृत्ति -नन्दीसूत्र वृत्ति ११. आप्तोपदेशः शब्दः । -न्यायसूत्र १।१७ १२. जं णं इमं अरिहंतेहि भगवंतेहिं उप्पण्णणाण-दसण-धरेहि तीय-पच्चुप्पण्णमणागय-जाणएहिं तिलुक्क वहित महितपूइएहिं सव्वण्ण हिं सव्वदरिसीहिं-पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं, तं जहा-आयारो जाव दिवाओ। -अनुयोगद्वार सूत्र ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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