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________________ श्रमण संस्कृति के विकास में बिहार की देन : १८६ तथागत गाँव-गाँव, नगर-नगर घूम-घूम कर सत्य, सेवा, स्नेह, अहिंसा, दया, करुणा, क्षमा तथा सहिष्णुता का सदेश देने लगे। वे अपने शिष्यों और अनुयायियों को सम्बोधित करते हुए कहते-"हे भिक्षुओ ! चलते चला, बढ़ते चला, जहाँ कहीं अधर्म है, लाचारी है, विवशता है, वहाँ जाओ, दीन-दुःखियों की सेवा करो; बहुतों के सुख के लिए, बहुतों के हित के लिए, अर्पित हो जाओ।" । जिस प्रकार जैन धर्म का मुख्य केन्द्र वैशाली थी, उसी प्रकार बौद्ध धर्म का मुख्य केन्द्र मगध था। सम्राट बिम्बिसार ने शीघ्र ही बौद्ध-धर्म को ग्रहण कर लिया और गिरिव्रज (राजगृह) में 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' की अनुगूंज से सारा आकाश निनादित होने लगा। बिम्बिसार के पुत्र और उत्तराधिकारी सम्राट अजातशत्र ने भी इस धर्म को अपनाया। बिम्बिसार का विवाह वैशाली के नप चेतक की पुत्री चेलना से हुआ था। इस प्रकार मगध और वैशाली सम्बन्धसूत्र में बंध गए। भगवान् बुद्ध की ख्याति सुनकर लिच्छवियों ने उन्हें वैशालो आने का निमन्त्रण दिया और वैशाली में भगवान बुद्ध कई बार पधारे। यहाँ तक कि अपने महापरिनिर्वाण के पूर्व कुशीनगर जाते हुए तथागत अन्तिम बार वैशाली से ही होकर गुजरे । वैशाली के निवासियों ने भगवान् बुद्ध का स्वागत-सत्कार पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ किया । अब वैशाली भी बौद्ध-धर्म का मुख्य केन्द्र बन गयी। वैशाली को यह विशेषता आगे भी बनी रही और जब बौद्धों की दूसरी परिषद् की बैठक का आयोजन किया गया तो ई० पू० ३७७ में वैशाली को ही इसके लिए उपयुक्त स्थान चुना गया। राजगृह और वैशाली का महत्त्व इससे और बढ़ जाता है कि बौद्ध धर्म के विकास में इन दोनों स्थानों का विशेष हाथ रहा है। इन्हीं दोनों स्थानों पर बौद्धों की महापरिषदें बैठी थीं और इन बैठकों में अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए थे। इस प्रकार मगध और वैशाली श्रमण-संस्कृति के उद्भव और विकास के दो ऐसे पवित्र स्थल हैं, जहाँ से बौद्ध एवं जैन विचार-धारा का पवित्र एवं १. भगवान् महावीर के उपदेश मे सम्राट् श्रेणिक बाद में जैनधर्मावलम्बी हो गए थे-सं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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