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________________ १८४ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना का योगदान स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य है । विदेहभूमि (मिथिला), वैशाली और मगध तीन उपक्षेत्रों में विभक्त विहार प्राचीन काल से ही धर्म, दर्शन, कला और संस्कृति के क्षेत्र में सराहनीय योगदान देता रहा है। इस निबन्ध के लघु कलेवर में मैं "श्रमण-संस्कृति के विकास में बिहार की देन" पर ही प्रकाश डालने का संक्षिप्त प्रयास करूंगा। यह विषय इतना गहन और गम्भीर है कि इस पर लेखनी उठाने वाले को काफी सम्हल कर चलना होगा। यह विषय एक स्वतन्त्र ग्रन्थ की अपेक्षा रखता है और अनुसंधित्सु बनकर ही इस विषय के साथ न्याय किया जा सकता है। फिर भी बिहार का निवासी होने के नाते तथा साहित्य और संस्कृति से थोड़ा सम्पर्क रखने के कारण जो कुछ भी मैं जान सका हूँ, उसकी एक छोटी-सी बानगी यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। भारतीय संस्कृति एक सामासिक संस्कृति है। यह संस्कृति एक ऐसी मिश्रित संस्कृति है, जिसे हम लाख प्रयत्न करने पर भी अलगअलग करके नहीं देख सकते। चींटियों द्वारा एकत्र अन्न के विभिन्न कणों को थोड़े ही प्रयास में अलग करके देखा जा सकता है; किन्तु, मधुमक्खियों द्वारा एकत्र विभिन्न प्रकार के पुष्पों के रस से निर्मित मधु को बाँटकर नहीं पहचाना जा सकता कि किस-किस पूष्प का रस इसमें मिला है। भारतीय संस्कृति का रूप इसी प्रकार के शहद के समान है। फिर भी सुविधा के लिए विद्वानों ने विभिन्न विचार. धाराओं के आधार पर इसका विभाजन किया है, जिनमें दो मुख्य धाराएँ हैं-आर्य और आर्येतर। आगे चलकर ये दोनों धाराएँ इस प्रकार मिल गई कि इनका अलग-अलग रूप ढूंढ़ पाना कठिन हो गया। आगे चल कर बौद्ध और जैन धर्मों के रूप में 'श्रमण-संस्कृति' के नाम से एक और धारा भारतीय संस्कृति की मुख्य धारा में मिलती है। आज की भारतीय संस्कृति वैदिक और श्रमण संस्कृति -इन दो संस्कृतियों का मिश्रण है, जिसमें पीछे से कई छोटी-मोटी धाराएँ मिलकर भारतीय संस्कृति को 'मानवता का पारावार' बना रही हैं। __ जैसा कि ऊपर निवेदित किया गया है, बिहार अति प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति, विशेषकर श्रमण-संस्कृति के विकास में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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