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श्रमण संस्कृति के विकास में
बिहार की देन :
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रत्न-प्रसू भारत- वसुन्धरा के विस्तृत आँचल में ऐसे अनेक पवित्र स्थल हैं, जहाँ मानवता के पथ-प्रदर्शक सन्तों, महात्माओं, तीर्थंकरों एवं धर्म-प्रवर्तकों ने जन्म ग्रहण किया है और अज्ञानान्धकार में पड़े विश्व मानव को ज्ञानालोक से आलोकित कर सत्य और सेवा तथा अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर अग्रसर किया है । नगराज हिमालय के शुभ्रपार्श्व में गंगा-यमुना और सरयू के सम्पृक्त पवित्र जल से अभिसिंचित भारत वसुधा के पूर्वोत्तर क्षेत्र को पुण्यमयी भूमि-विहार नमस्य है, जिसे विदेह, बुद्ध और वर्द्धमान महावीर को जन्म देने का गौरव प्राप्त है। बिहार के हिरण्यवाह शोण-तट, कलनादी गण्डकी के शुभ्र तट, वागमती तथा कोशी के शीतल तट तथा अन्त:सलिला फाल्गु के पवित्र तट आज भी अपने रहस्यभरे आँचल में इन महापुरुषों के तप और उनकी साधना को समेटे जिज्ञासुओं के लिए आकर्षण के केन्द्र बने हुए हैं। बिहार की पवित्र भूमि अति प्राचीनकाल से हो अवतारी पुरुषों के पवित्र पदों से पूत होकर अन्य पर्यटकों और भक्तों को भी पुत करती रही है और वर्तमान काल में भी यह पावन भूमि उसी अर्थ में समाहत है, क्योंकि इसने बापू और विनोबा को महात्मा और सन्त के रूप में ख्याति दी है ।
विदेह, वर्द्धमान और बुद्ध की इसी दार्शनिक चिंतनपूर्ण वसुधा ने आगे चलकर बिम्बिसार, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त और अशोक जैसे महान सम्राटों; महेन्द्र और संघमित्रा जैसी दिव्य सन्तानों, सरहपा, शबरपा, शांतिपा आदि सिद्धों; बाणभट्ट और विद्यापति जैसे अमर कलाकारों को जन्म दिया। भारतीय संस्कृति की प्रगति में बिहार
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