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गीता और श्रमण संस्कृति : एक तुलनात्मक अध्ययन १८१ शील :
सम्यकचारित्र-सम्यक व्यायाम
प्राणातिपातादि से विरत रहने वाली मानसिक अवस्था को शील कहते हैं । __ श्रद्धा और प्रज्ञा के पश्चात् तीसरा सोपान शील का है । क्योंकि प्रज्ञा से मनुष्य परिशुद्ध होता है और पराक्रम के द्वारा दुःखों से मुक्त होता है । ९२ शील रहित व्यक्ति का मात्र श्रुत (ज्ञान) से कोई अर्थ सिद्ध नहीं हो पाता ।९3 यथोचित सम्यक प्रयत्न (सम्यक व्यायाम) के बिना थोड़ी-सी भी प्रगति कर पाना मनुष्य के लिए कथमपि संभव नहीं है।९४ सम्यक प्रकार से आरम्भ किया गया कर्म ही सब सम्पत्तियों का मूल है।९५
भिक्ष को शीलसम्पन्न होकर विचरण करना चाहिए।९६ शील अनुपम बल है, शील सर्वोत्तम शस्त्र है, शील श्रेष्ठ आभूषण है और शील ही रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है । ९७ ___ बहुमूल्य मुक्ता और मणियों से विभूषित राजा वैसा सुशोभित नहीं होता है, जैसा कि शील के आभूषणों से विभूषित साधक सुशोभित होता है।९८
१०. विसुद्धिमग ४१६६ ११. पाणातिपातादोहि वा विरमन्तस्स वत्तपटिपत्ति वा पूरेन् तस्स चेतनादयो धम्मा।
-विसुद्धिमग्ग ६२. विरियेन दुक्खं अच्चेति, पाय परिसुज्झति ।
-सुत्तनिपात १।१०।४ ६३. सीलेन अनुपेतस्स,, सुतेनत्थो न विज्जति ।
-जातक ५॥३६२।६६ १४. हित्वा हि सम्मा वायाम, विसेसं नाम मानवो।।
अधिगच्छे परित्तम्पि, ठानमेत्त न विज्जति । --विसुद्धिमग्ग ४।६६ ६५. सम्मा आरद्धं सब्बासंपत्तीनं मूलं होति। -विसुद्धिमग्ग १४११३७ ६६. सम्पन्नसीला, भिक्खवे, विहरथ। -मज्झिमनिकाय १।६।१ ६७. सीलं वलं अप्पटिम, सील आबुधमुत्तमं ।
सीलमाभरणं सेठें, सील कवचमब्भुतं । -थेरगाथा १२१६१४ १८. सोभन्तेवं न राजानो, मुत्तामणिविभूसिता।
यथा सोभंति यतिनो, सीलभूसन भूसिता। -विसुद्धिमग्ग १।२४
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