SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता और श्रमण संस्कृति : एक तुलनात्मक अध्ययन १७६ और दर्शन दोनों का ग्रहण करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि चाहे मार्ग चतुःस्वरूप हो, चाहे त्रिरूप अथवा द्विरूप हो, किंतु परस्पर विरोधी नहीं हैं। ___एक बात विशेष है, जो जैन-दर्शन की अपनी मौलिकता है, वह यह है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप आदि सभी साधनाएँ सम्यक होनी चाहिएँ, मिथ्या नहीं। जब ये साधनाएँ आत्माभिमूखी होती हैं, तब सम्यक कहलाती हैं और जब इहलौकिक तथा पारलौकिक सुख-समृद्धि, यशप्रतिष्ठा आदि के लिए की जाती हैं, तब इन्हें मिथ्या कहा जाता है। मिथ्या-साधना मुक्ति के बदले बन्धन का कारण है, संसाराभिवृद्धि का हेतु है। __ इसलिए जैन-दर्शन में जहाँ-जहाँ भी ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि का वर्णन हो, वहाँ-वहाँ 'सम्यक्' शब्द यदि न भी कहा गया हो, तो भी सम्यक् समझना चाहिए । वैसे तो केवल 'ज्ञान' शब्द भी कुज्ञान का विरोधी होने से अपने अन्दर सम्यक्त्व लिए हुए है, अंतः अज्ञान की व्यावृत्ति हो जाती है। इसी प्रकार दर्शन, कूदर्शन की व्यावृत्ति करता है और चारित्र कुचारित्र की। बौद्ध-साधना-पद्धति : सम्पूर्ण कर्म-क्लेशों से मुक्ति प्राप्त करना ही मूल साधना है। साधक निरासक्त भाव से उस चरम-परिणति की साधना करता है। बौद्ध साधना में भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए श्रद्धा, प्रज्ञा और शील की प्राप्ति आधारभूत मानी गई है। उन्हें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र भी कहा गया है। मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र को बाधक माना गया है। इस बाधा को दूर करना साधना का परम लक्ष्य है। श्रद्धा: __ श्रद्धा अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्दृष्टि । बौद्ध-धर्म में चतुरार्यसत्यों का समझना ही सम्यग्दृष्टि है । ७७ उसके बिना मुक्ति-प्राप्ति सम्भव नहीं। भ० बुद्ध ने कहा था 'भिक्षओ ! जिस समय आर्यश्रावक दुराचरण के मूल कारण को जान लेता है, सदाचरण को ७७. सम्मादिट्ठि सुत्तन्त -मज्झमनिकाय ११११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy