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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना जिक अभियान नहीं है। यह तो उद्धार करने वाले ज्ञान का मार्ग है और इसीलिए इसको साधना गंभीर धार्मिक निष्ठा के साथ करनी होती है। आत्मा का विज्ञान हमें उस अज्ञान पर विजय पाने में सहायता देता है, जो हमसे परमात्मस्वरूप को छिपाए हुए है, जो दुःख का मूल कारण है। इसीलिए गीता में कहा है-'अध्यात्मविद्या विद्यानाम्' विद्याओं में अध्यात्मविद्या ही सर्वश्रेष्ठ है ( १०।३२)। इस एक का परिज्ञान होने पर कुछ भी ज्ञातव्य शेष नहीं रह जाता ।५४ जिस व्यक्ति को ज्ञान हो जाता है, वह सच्चे अर्थों में स्वाधीन हो जाता है ; वह अपने आन्तरिक प्रकाश के अतिरिक्त किसो अन्य शक्ति से मार्ग प्रदर्शन के लिए नहीं कहता । अध्यात्मविद्या ही राजविद्या है।५५ ज्ञान का महत्त्व :
ज्ञान का माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि-- "इस पृथ्वो पर ज्ञान के सदृश पवित्र वस्तु और कोई नहीं है। जो व्यक्ति योग द्वारा पूर्णता को प्राप्त हो जाता है, वह समय आने पर स्वयं अपने अन्दर ही अपने इस ज्ञान को प्राप्त कर लेता है। तात्पर्य यह है कि आत्मसंयम से यह ज्ञान अन्त में मनुष्य के मन में प्रकट हो जाता है । ५६
"हे अर्जुन ! जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि अपने ईंधन को राख कर देती है, उसी प्रकार ज्ञान की अग्नि भी सब कर्मों को भस्मसात कर देती हैं।५७
"चाहे तू सब पापियों से भी बढ़कर पापी क्यों न हो, फिर भी तू केवल ज्ञान की नाव द्वारा सब पापों के पार पहुँच जाएगा। ५८ ५४. यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ।
७।२ ५५. ६२ ५६. न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते । तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ॥
~४।३८ ५७. यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन ।
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा । -४१३७ ५८. अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः। सर्व ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि ।।
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