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भ. महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु भिक्षुणियाँ
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होने के लिए नाना उपदेश दिए तथा उनके पूर्व भव का वृत्तान्त बताया । मेघकुमार पुनः संयमारूढ़ हो गया ।
मेघकुमार भिक्षु ने जाति-स्मरण ज्ञान पाया । एकादशांगी का अध्ययन किया । गुणरत्नसंवत्सर तप की आराधना की । भिक्षु की 'द्वादश प्रतिमा' आराधी । अन्त में महावीर से आज्ञा ग्रहण कर वैभारगिरि पर आमरण अनशन कर उत्कृष्ट देवगति को प्राप्त हुए । ८२
बौद्ध परम्परा में सद्यः दीक्षित नन्द का भी मेघकुमार जैसा ही हाल रहा है। वह अपनी नव विवाहिता पत्नी जनपद कल्याणी नन्दा के अन्तिम आमंत्रण को याद कर दीक्षित होने के अनन्तर ही विचलित-सा हो गया । बुद्ध ने यह सब कुछ जाना और उसे प्रतिबुद्ध करने के लिए ले गये । मार्ग में उन्होंने उसे एक बन्दरी दिखलाई, जिसके कान, नाक और पूँछ कटी हुई थो; जिसके बाल जल गये थे, जिसकी खाल फट गई थी; जिसकी चमड़ी मात्र बाकी रह गई थी तथा जिसमें से रक्त बह रहा था और पूछा - " क्या तुम्हारी पत्नी इससे अधिक सुन्दर है ?" वह बोला - " अवश्य !" तब बुद्ध उसे त्रायस्त्रिंश स्वर्ग में ले गये । अप्सराओं सहित इन्द्र ने उनका अभिनन्दन किया । बुद्ध ने अप्सराओं की और संकेत करके पूछा - "क्या जनपद कल्याणी नन्दा इनसे भी सुन्दर है ?" वह बोला - "नहीं, भन्ते ! जनपद कल्याणी की तुलना में जैसे वह लुज बन्दरी थी, उसी तरह इनकी तुलना में जनपद कल्याणी है ।" बुद्ध ने कहा"तब उसके लिए तू क्यों विक्षिप्त हो रहा है ? भिक्षु धर्म का पालन कर । तुझे भी ऐसी अप्सराएँ मिलेंगी ।" ८३ नन्द पुनः श्रमण-धर्म
८२. पूर्व जीवन के लिए देखें – आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, प्रथम खण्ड के अन्तर्गत “भिक्षु संघ और उसका विस्तार" प्रकरण । ८३. जैन परम्परा का 'सुन्दरी नन्द' आख्यान भी इस बौद्ध-प्रसंग से बहुत मिलता-जुलता है । यहाँ बुद्ध अपने भाई को अप्सराएँ दिखला कर प्रतिबोध देते हैं, वहाँ विषयासक्त सुन्दरी नन्द को उसके भ्राता भिक्षु अपने लब्धि-बल से बंदरी, विद्याधरी और अप्सरा दिखाकर उसकी पत्नी सुन्दरी से विरक्त करते हैं ।
- द्रष्टव्य - आवश्यक मलयगिरिटीका
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