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________________ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना गौतमी : बौद्ध भिक्षुणियों में महाप्रजापति गौतमी का नाम उतना ही श्रुतिगम्य है, जितना जैन परम्परा में महासती चन्दनबाला का। दोनों के पूर्वतन जीवन-वृत्त में कोई समानता नहीं है, पर दोनों हो अपने धर्म-नायक की प्रथम शिष्या रहो हैं और अपने-अपने भिक्षणीसंघ में अग्रणी भी। गौतभी के जीवन को दो बातें विशेष उल्लेखनीय हैं। उसने नारी-जाति को भिक्षु-संघ में स्थान दिलवाया तथा भिक्षुणियों को भिक्षुओं के समान हो अधिकार देने की बात बुद्ध से कही। बुद्ध ने गौतमी को प्रवजित करते समय कुछ शर्ते उस पर डाल दी थीं, जिनमें एक थी-चिर-दीक्षिता भिक्षुणी के लिए भी सद्यः दीक्षित भिक्षु वन्दनीय होगा। गौतमी ने उसे स्वीकार किया, पर प्रवजित होने के पश्चात् बहुत शीघ्र ही उसने बुद्ध से प्रश्न कर लिया--- "भन्ते ! चिर-दीक्षिता भिक्षुणी ही नवदीक्षित भिक्षु को नमस्कार करे; ऐसा क्यों? क्यों न नव-दोक्षित भिक्षु हो चिर-दीक्षिता भिक्षुणी को नमस्कार करे ?” बुद्ध ने कहा--"गौतमी ! इतरधर्म-संघों में भी ऐसा नहीं है । हमारा धर्म-संघ तो बहुत श्रेष्ठ है ।" २3 आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व गौतमी द्वारा यह प्रश्न उठा लेना, नारी-जाति के आत्म-सम्मान का सूचक है। बुद्ध का उत्तर इस प्रश्न की अपेक्षा में बहुत ही सामान्य हो जाता है। उनके इस उत्तर से पता चलता है, महापुरुष भो कुछ एक ही नवीन मूल्य स्थापित करते हैं ; अधिकांशतः तो वे भी लौकिक-व्यवहार व लौकिक-ढरों का अनुसरण करते हैं। अस्तु, गौतमी की यह बात भले ही आज पच्चीस सौ वर्ष बाद भी फलित न हुई हो, पर उसने बुद्ध के समक्ष अपना प्रश्न रखकर नारी-जाति के पक्ष में एक गौरवपूर्ण इतिहास तो बना ही दिया है। गौतमी के अतिरिक्त खेमा, उत्पलवर्णा, पटाचारा, कुण्डल--- २३. विनयपिटक, चुल्लवग्ग, भिक्खुणी खन्धक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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