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अध्यात्मवाद : एक अध्ययन
विविधता के कारण वह अनेक प्रतीत होता है ।" मीमांसक कुमारिल ने आत्मा को नित्यानित्य माना है।
इस प्रकार हम देखते हैं, वैदिक दार्शनिकों ने भी आत्मा के सम्बन्ध में गहन चिन्तन किया है, किन्तु जैन-दर्शन जितना गंभीर चिन्तन वे नहीं कर पाये हैं। अनेकान्त दृष्टि से जैन दर्शन ने आत्मा का सर्वाङ्ग विवेचन किया है । वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।
उपर्युक्त पंक्तियों में जैन, बौद्ध, और वैदिक दर्शन-मान्य आत्मा की एक हल्कोसी झाँकी प्रस्तुत की गई है। आधुनिक वैज्ञानिक भी आत्मा के मौलिक अस्तित्व को स्वीकार करने लगे हैं। प्रोफेसर अलबर्ट आई स्टीन ने, जो पाश्चात्य देशों में संसार के प्रतिभासम्पन्न विद्वान माने गये हैं, लिखा है- "मैं जानता हैं कि सारी प्रकृति में चेतना काम कर रही है।" इनके अतिरिक्त अन्य अनेक मूर्धन्य वैज्ञानिकों के विचार भी मननीय हैं, पर स्थानाभाव के कारण उन्हें यहाँ उद्घ त करना सम्भव नहीं है।
७६. एक एव हि भूतात्मा, मूते मूते व्यवस्थितः। ७७. तत्त्वसंग्रह का० २२३-७ ।
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