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धर्मद
__ वैदिक संस्कृति में ही नैयायिक, नैशेषिक, सांख्य, मीमांसक और योग इन दर्शनों का समावेश होता है। ये सभी दर्शन प्रात्मा को स्वीकार करते हैं और आत्मा, मोक्ष आदि की स्वतन्त्र परिभाषाएँ प्रस्तुत करते हैं। __ नैयायिक व वैशेषिक दर्शन का मन्तव्य है कि प्रात्मा एकान्त नित्य और सर्वव्यापी है । इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख-दुःख आदि के रूप में जो परिवर्तन परिलक्षित होता है, वह आत्मा के गुणों में है, स्वयं प्रात्मा में नहीं। प्रात्मा के गुण प्रात्मा से भिन्न हैं, इनसे हम आत्मा का अस्तित्व जानते हैं।
सांख्य दर्शन प्रात्मा को कूटस्थ नित्य मानता है। उसके मतानुसार आत्मा सदा-सर्वदा एकरूप रहता है। उसमें परिवर्तन नहीं होता। संसार और मोक्ष भी आत्मा के नहीं, प्रत्युत प्रकृति के हैं " सुख-दुःख और ज्ञान भी प्रकृति के धर्म हैं, आत्मा के नहीं। आत्मा तो स्थायो, अनादि, अनन्त, अविकारी नित्य चित्स्वरूप और निष्क्रिय है। 3 सांख्य दृष्टि से आत्मा कर्ता नहीं, किन्तु फल का भोक्ता है । ४ कर्तृत्व प्रकृति में है।५
मीमांसक दर्शन के अनुसार प्रात्मा एक है, किन्तु देहादि की
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।
-गीता २०२२
७१. सांख्यकारिका ६२ ७२. सांख्यकारिका ११ ७३. अमूर्तश्चेतनो भोगी, नित्यः सर्वगतोऽक्रियः ।
अकर्ता निगुणः सूक्ष्मः आत्मा कपिलदर्शने ।।
-षड्दर्शनसमुच्चय
७४. सांख्यकारिका १७ ७५. प्रकृतेः क्रियमाणानि, गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
अहंकारविमूढात्मा, कर्ताऽहमिति मन्यते ।
-गीता ३।२७
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