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महावीर के सिद्धान्त
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आज विज्ञान और विनाश की इस कसमसाती वेला में भगवान. महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त दृष्टि के प्रचार की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी उस युग में थी। यह देशनात्रयी मानवसमाज के लिए एक अमृतोपम औषधि है, जिसके सेवन से मानव समाज पूर्ण स्वस्थ, मस्त और प्रसन्न हो सकता है। जब विचार में अनेकान्त, व्यवहार में अहिंसा और समाज में अपरिग्रह की उदात्त भावना अठखेलियां करने लगेगी तब जन-जन के जीवन में आनन्द की मियाँ तरंगित होंगो।
अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त ही भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धान्त हैं - इनमें भारतीय संस्कृति का सार संगृहीत है। समाज, राष्ट्र और जीवन में सर्वत्र सुख और सन्तोष का संचार करना ही इसका मूल ध्येय है, जो पुरातन होने पर मी अभिनव है। चिरन्तन होने पर भी चिरनवीन है।
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