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________________ १८८ धर्म और दर्शन होती है।३४ अतः प्रत्येक साधक का कर्तव्य है कि वह श्रेष्ठ सद्गुणों के धारक महापुरुषों की निरन्तर सेवा करे। हिन्दी साहित्य के एक सन्त कवि ने भी बड़ी सुन्दरता से कहा है कि “सन्त की सेवा करने से परमात्मा भी प्रसन्न होता है।"37 सेवा से ही ज्ञान का अखण्ड प्रकाश प्राप्त होता है । प्रागमसाहित्य का मन्थन करने वाला प्रत्येक जिज्ञासु यह जानता है कि गणधर गौतम और जम्बू आदि ने जो ज्ञान की निर्मल ज्योति प्राप्त की थी, उसके अन्तस्तल में उनकी सेवा ही प्रमुख थी। सेवा से प्राप्त ज्ञान शतशाखी के रूप में विस्तृत हो सकता है । ग्लान श्रमण की सेवा करना स्वयं भगवान् की सेवा करने के समान है। गौतम महावीर से प्रश्न करते हैं-भगवन् ! जो मनुष्य ग्लान की सेवा कर रहा है वह धन्य है अथवा जो मनुष्य दर्शन के द्वारा प्रापको स्वीकार कर रहा है वह धन्य है ? ३४. अभिवादनसीलस्स, निच्चं वुडढापचायिनो । चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति, आयु वण्णो सुखं बलम् ॥ -धम्मपद १०६ (ख) अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् । - मनुस्मृति, अध्याय २ श्लोक १२१ ३५. सन्तन की भक्ति किया, प्रभु रीझत है आप। जांका बाल खेलाइये, तांका रीझे बाप ॥ (ख) ज्ञातासूत्र अ० १ सू० ३. (ग) भगवती श० ५, उ० ४, सू० ५ ३६. जे आयरिय उवज्झायाणं सुस्सूसा वयणं करे। तेसि सिक्खा पवड्ढांति, जल-सित्ता इव पायवा ।। -दशवकालिक प्र०६-२ गा० १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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