________________
सेवा : एक विश्लेषण
वैयावृत्य के दस प्रकार हैं-(१) प्राचार्य, (२) उपाध्याय, (३) शैक्ष, (४) ग्लान. (५) तपस्वी, (६) स्थविर, (७) सार्मिक, (८) कुल (६) गण और (१०) संघ की वैयावृत्य करना।
प्राचार्य, उपाध्याय, स्थविर प्रभृति के प्रति हार्दिक श्रद्धा रखना, उनकी प्राज्ञा के अनुकूल प्रवृत्ति करना. सेवा है । तपस्वी को तप में सहयोग प्रदान करना और नव दीक्षित श्रमण को श्रामण्य धर्म के विधानों से परिचित कराना, व सहधार्मिकों को धर्म पथ पर अग्रसर करना, उनकी जीवन विधि के प्रत्येक चरण में सहायता देना । कुल, गण, संघ के उत्कर्ष के लिए सतत सन्नद्ध रहना, रुग्ण व्यक्तियों को रोग के उपादानों से परिचित कराना तथा औषधोपचार से स्वस्थ
६. वेयावच्चे दसविहे पण्णत्ते तं जहा-आवरिय वेआवच्चे,
उवज्झायवेआबच्चे, सेहवेआवच्चे, गिलाणवेगावच्चे, तवस्सिवेआवच्चे थेरवेआवच्चे, साहम्मिअवेआवच्चे, कुलवेआवच्चे, गणवेआवच्चे, संघवेआवच्चे।
-भगवती शतक २५, उद्द० ७ सू० ८०२ (ख) वेआवच्चरतिबहुले, वेयावच्च दसविहं तं जहा
आयरियउवज्भाते, थेर-तवस्सी-गिलाण-सेहाणं । साहम्मिय-कुल-गण, संघसंगयं तमियं कायव्वं ।।१।।
- प्रावश्यक चूणि, जिनदास पृ० १३४ (ग) आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति प० ११६ (घ) आवश्यक मलयगिरि वृत्ति । (ङ) प्राचार्योपाध्याय तपस्विशक्षग्लानगणकुलसंघसाधुमनोज्ञानाम् ।
-तत्त्वार्थ सूत्र, अ० ६ सू० २४ (च) नवतत्व प्रकरण सार्थः पृ० १२६ (छ) नवतत्वप्रकरण, सुमंगला टीका-पत्र ११२-१ (ज) औपपातिक सूत्र । (झ) स्थानांग । (अ) आयरिय उवज्झाए, थेर तवस्सी गिलाण सेहाणं । साहम्मिय कुल-गण, संघसंगयं तमिह कायव्वं ।।
-उत्त० ३०१३३ नेमिचन्द्रीय टीका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org