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धर्म और दर्शन
की।५ बारह बार उन्होंने एक रात्रि की प्रतिमा अंगीकार की।६ जब भगवान् दृढ़भूमि के पेढाल ग्राम में विचरण कर रहे थे तब उन्होंने पोलाश चैत्य में तीन दिन का उपवास किया। कायोत्सर्ग मुद्रा की। उनका तन आगे की ओर कुछ झुका हुआ था। एक पुद्गल पर दृष्टि केन्द्रित थी। आँखें अनिमेष थीं। तन प्रणिहित था, इन्द्रियाँ गुप्त थीं। दोनों पैर सटे हुए थे और दोनों हाथ प्रलम्बित थे। प्रस्तुत मुद्रा में भगवान् ने एक रात्रि की महाप्रतिमा की। __भगवान् ने सानुलष्टि ग्राम में भद्रा, महाभद्रा और सर्वतोभद्रा प्रतिमा नामक तपश्चर्या की । चारों दिशाओं में चार-चार प्रहर तक कायोत्सर्ग करना भद्रा प्रतिमा है।" इस प्रतिमा की आराधना करने वाला प्रथम दिन पूर्वदिशा की ओर मुख कर कायोत्सर्ग करता है, रात्रि
८५. तिन्नि सए दिवसारणं अउणापन्न य पारणाकालो । उक्कुडुअनिसिज्जाए, ठियपडिमाणं सए बहुए ॥
-श्रावश्यक नियुक्ति गा० ५३४ ८६. दस दो अ किर महप्पा ठाइ मणी एगराइयं पडिमं । अट्ठमभत्तेण जई इक्किकं चरमराई अ॥
-आवश्यक नियुक्ति गा० ५३१ ८७. ततो भयवं बहुमेच्छं दढभूमि गतो, तस्स बहिं पोलासं नाम चेइयं, तत्थ
अट्ठमेण भत्तण अपाणएण ईसिपब्भारगएण काएणं, इसीपब्भारगतो नाम ईसि ओणतो कातो, एगपोग्गलनिरुद्धदिट्ठी अणिमिसनयणे, तत्थवि जे अचित्ता पोग्गला तेसु दिट्टि निवेसेइ, सचेत्तेहि दिट्ठी अप्पाइज्जइ, जहा दुच्चाए, अहापणिहिएहिं गत्तहिं सविदिएहिं गुत्तहिं दोवि पाए साहट्ट वग्घारियपाणी एगराइयं महापडिमं ठितो । एतदेवाहदढभूमी बहुमिच्छा पेढालग्गाममागओ भयवं । पोलासचेइयम्मि ट्ठिएगराई महापडिमं ॥
-आवश्यक नियुक्ति गा० ४६७ मलयगिरि वृत्ति पत्र २८८ पूर्वादिदिक्चतुष्टये प्रत्येकं प्रहरचतुष्टयकायोत्सर्गकरणरूपा अहोरात्र द्वयमानेति ।
- स्थानाङ्ग सूत्र, सटीक प्र० भा० पत्र ६५-२
८८.
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