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________________ श्रमणसंस्कृति और तप १२ तप मंगल ही नहीं, उत्कृष्ट मंगल है ।" भगवान् श्री ऋषभदेव ने एक हजार वर्ष तक छद्मस्थावस्था में तप की साधना की ।" भगवान् श्री महावीर ने भी बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक उग्र तप तपा ।" इस लम्बी अवधि में उन्होंने केवल तीन सौ उनपचास दिन आहार ग्रहण किया । शेष दिन वे निर्जल और निराहार रहे। आचारांग, आवश्यक नियुक्ति, श्रावश्यक चूरिण, आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, आवश्यक मलयगिरिवृत्ति त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र, महावीर चरियं प्रभृति ग्रन्थों में भगवान् श्री महावीर के उग्र तप का जो रोमांचकारी वर्णन किया है उसे पढकर पाठक विस्मित हो जाता है । आचार्य भद्रबाहु " १४ के शब्दों में अन्य तीर्थङ्करों की ग्रपेक्षा महावीर का तपः कर्म प्रत्युग्र था । १०. ११. १२. १३. १४. दिगम्बर आचार्य गुणभद्र के अभिमत से सुमतिनाथ ने भी बेला के तप से दीक्षा ग्रहण की थी : दीक्षां षष्ठोपवासेन सहेतुकवनेऽगृहीत् । सिते राज्ञां सहस्र ेण सुमतिर्नवमीदिने || - उत्तर पुराण, पर्व ९१, दशकालिक १|१ उसमे जाव अप्पा १४७ अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं निच्च वोसट्टकाये चियत्तदेहे भावेमाणस्स एक्कं वाससहस्सं विक्कतं । Jain Education International (ख) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सू० ४०-४१ पृ० ८४ । आवश्यक नियुक्ति गा० ५२६ से ५३५ (ख) आवश्यक हारिभद्री मावृत्ति १० २२७ - २२६ (ग) त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र १०।४।६५२ - ६५७ (घ) महावीर चरियं, गुणचन्द्र ७११-८, १० २५० तिम्नि सए दिवसारणं अउणापन्ने य वारणाकालो । इलो० ७० पृ० ३० - कल्पसूत्र सू० १९६ पृ० ५८ ( पुण्यविजय जी द्वारा सम्पादित) उग्गं च तवो कम्मं, विसेसओ वद्धमाणस्स । - श्रावश्यक नियुक्ति ५३४ For Private & Personal Use Only - श्रावश्यक नियुक्ति गा० २४० www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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