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________________ - সাহাকাল साहित्य समाज का दर्पण भी है, और दीपक भी है । समाज की यथार्थ स्थिति का वह दिग्दर्शक भी है और समाज का पथ-प्रदर्शक भी है, इसलिए साहित्य का अध्ययन, प्रचार प्रकाशन एक सुरुचि सम्पन्न जाग्रत समाज का परिचायक है। हमारी संस्था श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय विगत २५ वर्षों से उत्कृष्ट साहित्य के प्रकाशन में संलग्न है। इसके मूल प्रेरणा स्रोत हैं श्रद्धय उपाध्याय गुरुदेव श्रीपुष्करमुनि जी म. तथा ऊर्जा स्रोत हैं-श्रमणसंघ के उपाचार्य श्रीदेवेन्द्रमुनिजी। उपाचार्य श्री एक सतत ज्ञानयोग में रत सिद्ध हस्त लेखक, चिन्तक और उदार विचारशील संघ नेता हैं । आपकी वाणी में तथा व्यवहार में जहाँ अतीव मधुरता, शालीनता और अनुशासनबद्धता है, वहीं आपके विचार जीवन को ऊर्ध्वमुखो बनाने, मानव मात्र को अध्यात्म व नीति की प्रेरणा देने वाले हैं। उपाचार्य श्री सतत अध्ययनशील संत हैं । गम्भीर से गम्भीर ग्रन्थों का अनुशीलन करते रहते हैं और फिर उस अधीत विषय को हृदयंगम करके स्वयं भी लिखते हैं तथा हाथ में दर्द होने से बोलकर भी लिखवाते हैं। उपाचार्य श्री द्वारा समय-समय पर लिखा हुआ साहित्य हमें उपलब्ध होता है और हमारा सौभाग्य है कि हम उसे प्रकाशित कर जनजन के हाथों में पहुँचाते हैं। श्री तारक गृरु जैन ग्रन्थालय ने अब तक विभिन्न विषयों पर लगभग २७० से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं जो किसी भी संस्था के लिए सात्विक गौरव का विषय बन सकता है । हमें इन प्रकाशनों पर गौरव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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