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आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३८३
अकुशलमाला का पुत्र होता है - 'बाल' । बाल को ' स्पर्शन' की कुसंगति श जो कष्ट भोगने पड़े, और तदनुसार, उसे जिन-जिन भवों में भ्रमित होना पड़ा, उस सबका व्यापक वर्णन है । 'बाल' के रूप में भी 'संसारीजीव' (द्वितीय प्रस्ताव ) चोर के भव-वर्णन को समझना चाहिए ।
चतुर्थ प्रस्ताव में - सिद्धार्थ नगर के राजा नरवाहन और उनकी रानी विमलमालती के पुत्र रिपुदारण को 'असत्य' और 'मान' (गर्व - घमण्ड ) के वशीभूत हो जाने से, तथा भूतल नगर के राजा मलसंचय और उनकी पत्नी 'तत्पंक्ति' के दो बेटों - शुभोदय और अशुभोदय, में से अशुभोदय की पत्नी स्वयोग्यता के पुत्र राजकुमार 'जड़' को 'रसना' की आसक्ति / लुब्धतावश तथा पाँचवें प्रस्ताव में - वर्धमान नगर के श्रेष्ठी सोमदेव और सेठानी कनकसुन्दरो के लड़के वामदेव को चौर्य 'माया' का वशवर्ती बनने से, तथा धरातल नगर के राजा शुभविपाक के अनुज अशुभविपाक की पत्नी परिणति के पुत्र मन्दकुमार को ' घ्राण' के प्रति लगाव होने से छठवें प्रस्ताव में - आनन्दपुर श्र ेष्ठ हरिशेखर एवं सेठानी बंधुमती के पुत्र घनशेखर को 'मैथुन' और 'लोभ' का वशंवद हो जाने से, तथा मनुजगति के राजा जगत्पिता 'कर्मपरिणाम' व जगन्माता महादेवी के छः पुत्रों में से द्वितीय पुत्र 'अधम' को विषयाभिलाष की पुत्री दृष्टिदेवी के साहचर्य से, सातवें प्रस्ताव में, साह्लाद नगर के राजा जीमूत और उनकी पटरानी लीलादेवी के पुत्र धनवान को 'महामोह' और 'परिग्रह' से, तथा क्षमातल नगर के राजा ' स्वमलनिचय' और उनकी रानी 'तदनुभूति' के दूसरे पुत्र 'बालिश' को कर्मपरिणाम की कन्या 'श्र ुति' के सहवास से कैसी-कैसी भयंकर यातनाऍ, पीड़ाएँ भुगतनी पड़ीं, और किन-किन योनियों में कितनी - कितनी बार जन्म-मरण लेना पड़ा, इत्यादि का वर्णन, अवान्तर कथाओं सहित किया गया है ।
आठवें प्रस्ताव में ४ विभाग हैं । इनमें से पहिले विभाग में - सप्रमोद नगर के राजा मधुवारण और उनकी पटरानी सुमालिनी के यहाँ गुणधारण के रूप में 'संसारी जीव' जन्म लेता है । इसके जीवनवृत्त द्वारा यह बत - लाया गया है कि 'कर्म 'काल' 'स्वभाव' 'भवितव्यता' का क्या कार्य है ? इन सबके संयोग / सहयोग से किस तरह पुण्योदय और पापोदय आते-जाते हैं ? दूसरे विभाग में, उस रहस्य को सुलझाया गया है, जो कथा के आरम्भ होने के साथ-साथ, पाठक के मस्तिष्क में भी घर कर चुका था। तीसरे
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