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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
'मयणजुज्झ' नामक अपभ्रंश रचना को बुच्चराय की कृति बतलाकर, उस की रचना समाप्ति की तिथि-आश्विन शुक्ला प्रतिपदा शनिवार, हस्तनक्षत्र वि. सं. १५८६, बतलाई है। श्री अगरचन्द नाहटा के सौजन्य से प्राप्त, इस रचना की पाण्डुलिपि के लिखने की समाप्ति की तिथि–'सं० १७६७ वर्षे पौषमासे शुक्लपक्षे १२ तिथी पं० दानधर्म लिखितं श्रीमरोडकोटमध्ये' के आधार पर प्रदर्शित की है। इस रचना में, भगवान् पुरुदेव द्वारा की गई मदन-पराजय का वर्णन है ।
यहाँ, यह उल्लेखनीय है कि प्रो० राजकुमार जैन ने, इसी प्रस्तावना में, 'उपमिति भव-प्रपञ्च कथा' का उल्लेख करने के साथ-साथ, एक और 'मदनजुज्झ' अपभ्रंश रचना का उल्लेख किया है । जिसका रचनाकाल, उन्होंने वि० सं० ६३२ लिखा है। किन्तु, उसके रचनाकार का नाम उन्होंने निर्दिष्ट नहीं किया। यह विचारणीय है।
पं० भूदेव शुक्ल का 'धर्मविजय' नाटक, रूपक साहित्य की एक भाव पूर्ण लघु रचना है। इसमें पांच अङ्क हैं। जिनमें धर्म और अधर्म को नायक प्रतिनायक बतला कर, उनके पारस्परिक यूद्ध का वर्णन किया गया है। अन्त में, धर्म अपने परिवार के साथ मिलकर अधर्म का सपरिवार नाश कर के, विजय प्राप्त करता है। पं० श्रीनारायण शास्त्री खिस्ते का अनुमान है कि इस नाटक की रचना १६वीं शताब्दी में हुई, और भूदेव शुक्ल, सम्राट अकबर के समकालीन रहे ।
___ नाटककार ने, समसामयिक सामाजिक परिस्थितियों को बड़ी कुशलता से प्रतिबिम्बित किया है। उस समय, विभिन्न प्रदेशों में ब्यभिचार, दुराचार, झूठ, हिंसा, चोरी जैसी अमानवीय वृत्तियों का भयंकर प्रचार था। जगह-जगह द्यूत-क्रीड़ायें होती थीं, खुले आम मद्यपान होता था। वैभवमयी अट्टालिकाओं के प्रांगण में नृत्यांगनाओं के धुंघरुओं की मुखरता, परकीयाओं को स्वाधीन और स्वकीया बनाना, धर्माधिकारियों द्वारा धर्म के नाम पर विधवाओं का सतीत्व भंग आदि-आदि हुआ करता था।
अधर्म द्वारा, अपने प्रतिनिधि पौराणिक से देश की स्थिति पूछे जाने पर, वह बतलाता है-'देश की नदियों में पानी बहुत कम रह गया है ।
१ श्री नारायण शास्त्री खिस्ते द्वारा सम्पादित, 'प्रिंस आफ वेल्स'- सरस्वती
भवन सीरीज, बनारस से प्रकाशित-१६३० ई०
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